बिहार का बॉबी कांड, जिसे छिपाने के लिए पूरी बिहार सरकार लगी थी
यह घटना 1983 के मई महीने की है। जब दो अखबारों ने अपने प्रथम पृष्ठ पर एक खबर छापी। खबर पढ़ कर पूरा बिहार दंग हो गया। यह खबर बिहार के बॉबी हत्याकांड की थी, जो आज तक एक राज बना हुआ है।

बिहार विधानसभा में काम करने वाली एक लड़की की मौत हो जाती है। और लगभग 4 घंटे में ही उसके शरीर को ले जाकर दफन कर दिया जाता है। इसके बाद यह खबर एक अखबार में छपती है। और हरकत में आते हैं आईपीएस किशोर कुणाल। तब किशोर कुणाल पटना के एसएसपी हुआ करते थे। जैसे-जैसे जॉच आगे बढ़ती है, वैसे-वैसे सभी राज खुलने लगते हैं। लड़की की मौत के बाद उसका दो रिपोर्ट तैयार करवाया जाता है। एक रिपोर्ट में लिखा था की लड़की की मौत इंटरनल बिल्डिंग की वजह से हुई है। और मौत का समय 4 बजे सुबह का था। वहीं कामा दूसरी रिपोर्ट में लिखा था की लड़की की मौत हार्ट अटैक हुई है। और, लड़की की मौत का समय साढ़े 4 बजे सुबह का था।

जांच में कुछ बड़े नाम सामने आते हैं। लेकिन, पुलिस पर मामले को दबाने का दबाव होता है। लेकिन, जॉंच अधिकारी मामले को दबाने से मना कर देते हैं।
इसके बाद जहां लड़की के शरीर को दफ़नाया गया था। वहां से शरीर को बाहर निकाला जाता है। फिर, उसका पोस्टमार्टम करवाया जाता है। पोस्टमार्टम में जो रिपोर्ट आती है उससे पूरे बिहार में हड़कंप मत जाता है। उस रिपोर्ट से पता चलता है कि लड़की के शरीर में मेलेथियन नामक जहर है। अब ये स्पष्ट हो चुका था कि बॉबी की हत्या की गई थी।

पुलिस जांच में ये पता चला कि बॉबी का बहुत से हाई प्रोफाइल लोगों से परिचय था। दूसरी बात यह पता चली कि जब 1978 में बॉबी को विधानसभा में नौकरी मिली तो वहां एक प्राइवेट एक्सचेंज बोर्ड लगा दिया गया। ताकि, बॉबी को टेलीफोन ऑपरेटर की नौकरी मिल सके। कुछ समय बाद उसे बोर्ड को बंद कर दिया गया। और, बॉबी को टाइपिस्ट की नौकरी मिल गई। नौकरी के दौरान उसकी कई विधायकों और नेताओं से जान पहचान हुई। जॉंच के लिए किशोर कुणाल बॉबी की माता (राजेश्वरी सरोज दास) से मिले। जो विधान परिषद की तत्कालीन सभापति थी। साथ ही यह पाया कि बॉबी का कोई भी सामान उनके सरकारी आवास पर नहीं है। उसी आवास से लगा एक आउट हाउस था जहां दो लड़के रहते थे। कुणाल ने उन दोनों से पूछताछ की। उन लड़कों ने बताया कि 7 मई की रात वहां बॉबी से मिलने रघुवर झा नामक व्यक्ति आया था। रघुवर झा उस समय के बहुत बड़े कांग्रेस नेता राधा नंदन झा का बेटा था।

साल 2021 में किशोर कुणाल की लिखी पुस्तक छपी “दमन तक्षकों का”। इस किताब में कुणाल बताते हैं कि रघुवर जाकर विषय में उन्हें बॉबी की मां ने भी बताया था। बॉबी की मां ने कहा कि रघुवर झा ने बॉबी को एक दवा दी। जिसके बाद उसकी तबीयत बिगड़ी और अंततः उसकी मौत हो गई। पुलिस के कथनानुसार इस केस का मुख्य अभियुक्त विनोद कुमार था। जिसने नकली डॉक्टर बनकर रघुवर झा के कहने पर बॉबी को दवा दी थी। जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ रही थी। वैसे-वैसे बिहार की राजनीति का माहौल गर्म हो रहा था। धीरे-धीरे इस केस में कुछ सत्ताधारी विधायक और सरकार के मंत्रियों तक का नाम शामिल हुआ। विपक्षी कम्युनिस्ट पार्टी ने आरोप लगाया कि आरोपियों को ना पकड़ने के लिए सरकार पुलिस पर दबाव बना रही है। विपक्षी नेता कर्पूरी ठाकुर ने कई बार इस केस के लिए सीबीआई जांच की मांग की। एक दिन बिहार के मुख्यमंत्री (जगन्नाथ मिश्र) का कुणाल को फोन आया। मुख्यमंत्री ने पूछा कि बॉबी कांड क्या है।

कुणाल ने मुख्यमंत्री से कहा कि सर कुछ मामलों में आपकी छवि अच्छी नहीं है, किंतु चरित्र के मामले में आप बेदाग हैं। इस केस में पड़ेंगे तो यह ऐसी आग है कि आपका हाथ जल जाएगा। पुस्तक के अनुसार इसके बाद मुख्यमंत्री ने फोन रख दिया। इसी बीच मई 1983 में लगभग चार दर्जन विधायक और मंत्रियों की एक टोली मुख्यमंत्री से मिलती है। सरकार बचाने के लिए जगन्नाथ मिश्रा ने 25 मई को यह केस सीबीआई को सौंप दिया।

सीबीआई ने केस ही पलट दिया। सीबीआई ने कहा की यह हत्या का नहीं, आत्महत्या का मामला है। उसने अपने प्रेमी से मिले धोखे की वजह से सेंसिबल नमक जहर खा लिया था। मरने से पहले बॉबी ने अपनी प्रेमी को एक पत्र भी लिखा था। इसे भाभी की मां ने जला दिया था। साथ ही सीबीआई ने पटना पुलिस पर आरोप लगाया कि उन्होंने उन दो लड़कों के साथ अत्याचार किया है। उसके बाद उन्होंने रघुवर झा की फोटो दिखाकर उसे पहचानने को कहा है।

सीबीआई कि रिपोर्ट जब सामने आई तब बिहार में विपक्ष ने हंगामा करना शुरू कर दिया। पटना फॉरेंसिक लैब ने भी सीबीआई रिपोर्ट पर सवाल उठाए थे। उनके अनुसार पोस्टमार्टम में सेंसिबल नामक दवा नहीं पाया गया था। जबकि बॉबी की मौत मेलेथियन नामक दवा से हुई थी। अततः इस केस को आत्महत्या का रूप देकर केस को बंद कर दिया गया।
साभार – लल्लनटॉप
