Bringing Today's Stories and news to Your Screen

Stories

तन्हा सफ़र

पहाड़ में बसा हुआ एक इलाका,मगर आधुनिकता कि चादर ओढ़ कर था

ai generated, woman, medieval-8905753.jpg

वो एक भव्य इमारत थी जैसे एक हवेली कि तरह लग रही थी।वक्त के तकाजे से अब वो थोड़ी पुरानी हो गयी थी पर अभी भी उस नए शहर में पूरी ठाठ से खड़ी थी।
उस पुरानी इमारत से 70 के दश्क की गाने की आवाज़ सुनाई दे रही थी,(ये शाम मस्तानी मदहोश किए जाए
मुझे डोर कोई खींचे तेरी ओर लिए जाए…..)
उस इमारत के अंदर नीलम जी रहती थी वो करीब 80 साल कि थी।उन्होंने गाना का कैसट लगाया हुआ था और वो अपने लिए चाय बना रही थी।
वो अपनी चाय लेकर खिड़की के पास बैठ गयी और बाहर बच्चों को खेलते हुऐ देखने लग गयी।
नीलम जी इस हवेली की मालकिन थी वो उस शहर के रईसों में से एक थी। शायद कभी किसी जमाने में उनके पूर्वजों ने इस शहर पर राज भी किया था।शहर के लोग उनकी इज्जत अभी भी करते थे,पर अब नीलम जी अकेली थी बहुत अकेली!
नीलम जी कि तीन संतान थी दो बेटा और एक बेटी।उनका एक बेटा अपने परिवार के साथ ब्रिटेन में रहता था,उसे तो बिल्कुल परवाह ही नहीं थी अपनी मां की हाँ कभी कभी वीडियो कॉल कर लेता था।
उनका दुसरा बेटा इसी शहर में था पर अपने मां के पास नहीं रहता था,वजह वो ही क्यों अकेले मां की देखभाल करे और उसके परिवार के बॉरिंग थी जो उनकी मां जो की मॉडल जिंदगी में फिट नहीं होती थी।और एक बेटी भी थी जो दुसरे शहर में रहती थी पर ज्यादा दुर नहीं,उसका ये मानना था कि मां तो अपने बेटे को ही जायदाद में हिस्सा देगी और दुनिया तो हमेशा बेटे के साथ होती है जायदाद के मामले में तो वो क्यों मां कि सेवा करें हाँ सास को कुछ पूछ लिया करती थी क्योंकी बात जायदाद कि थी।
पर तीनों ही मां को हर महिने अपने हिस्से के पैसे दे दिया करते थे।पर नीलम जी का अकेलापन कोई दूर नहीं कर सकता था,वो अब बूढ़ी हो चुकी थी उन्हें काम करने में दिक्क़त होती थी।अब उन्हें अपना शरीर भी बोझ लग रहा था,अब उन्हें पैसों से ज्यादा जरूरत किसी इंसान कि थी जो उनके साथ बैठ कर कुछ देर ही सही बातें करे,उनके पास बैठे,उन्हें ये अहसास दिलाए कि वो अभी भी अकेली नहीं है।
वहीं उसी शहर में एक सोसाइटी में काव्या रहती थी वो एक कॉलेज स्टूडेंट थी,सांवला से ज्यादा गहरा उसका रंग था,कमर से कुछ ऊपर तक उसके बाल थे और उसकी ऑंखे गहरी काली थी वो हमेशा एक बहुत छोटी सी नोजरिंग पहनती थी।फिलहाल उसने कानों में ईयरफोन लगाए थे जिसमें वो अंग्रेजी गाने सुन रही थी और साथ ही साथ अपनी कोई असाइनमेंट भी कर रही थी।वैसे गाने सुनना फिलहाल उसकी मजबूरी थी क्योंकी अभी उसके कमरे के नीचे हाल में उसके मम्मी-पापा में महाभारत हो रही थी। वो दोनों हमेशा छोटी सी बातों पर भी खुब लड़ते थे।
रात का वक्त,

ai generated, woman, headband-8904929.jpg

पहाड़ में बसा हुआ एक इलाका,मगर आधुनिकता कि चादर ओढ़ कर।

वो एक भव्य इमारत थी कुछ कुछ एक हवेली कि तरह लग रही थी।वक्त के तकाजे से अब वो थोड़ी पुरानी हो गयी थी पर अभी भी उस नए शहर में पूरी ठाठ से खड़ी थी।
उस पुरानी इमारत से 70 के दश्क गाने की आवाज़ सुनाई दे रहे थी,(ये शाम मस्तानी मदहोश किए जाए
मुझे डोर कोई खींचे तेरी ओर लिए जाए…..)
उस इमारत के अंदर नीलम जी रहती थी वो करीब 80 साल कि थी।उन्होंने गाना का कैसट लगाया हुआ था और वो अपने लिए चाय छान रही थी।
वो अपनी चाय लेके खिड़की के पास बैठ गयी और बाहर बच्चों को खेलते हुऐ देखने लग गयी।
नीलम जी इस हवेली कि मालकिन थी वो उस शहर के रईसों में से एक थी।शायद कभी किसी जमाने में उनके पूर्वजों ने इस शहर पर राज भी किया था।शहर के लोग उनकी इज्जत अभी भी करते थे,पर अब नीलम जी अकेली थी बहुत अकेली!
नीलम जी कि तीन संतान थी दो बेटा और एक बेटी।उनका एक बेटा अपने परिवार के साथ ब्रिटेन में रहता था,उसे तो बिल्कुल सुध ही नहीं थी अपनी मां की हाँ कभी कभी वीडियो कॉल कर लेता था।
उनका दुसरा बेटा इसी शहर में था पर अपने मां के पास नहीं रहता था,वजह वो ही क्यों अकेले मां की देखभाल करे और उसके परिवार के बॉरिंग थी जो उनकी मां जो की मॉडल जिंदगी में फिट नहीं होती थी।और एक बेटी भी थी जो दुसरे शहर में रहती थी पर ज्यादा दुर नहीं,उसका ये मानना था कि मां तो अपने बेटे को ही ज्यादा हिस्सा देगी और दुनिया तो हमेशा बेटे के साथ होती है जायदाद के मामले में तो वो क्यों मां कि सेवा करें हाँ सास को कुछ पुछ लिया करती थी क्योंकी बात जायदाद कि थी।
पर तीनों ही मां को हर महिने अपने हिस्से के पैसे दे दिया करते थे।पर नीलम जी का अकेला पन कोई दुर नहीं करता था,वो अब बूढ़ी हो चुकी थी उन्हें काम करने में दिक्क़त होती थी।अब उन्हें अपना शरीर भी बोझ लग रहा था,अब उन्हें पैसों से ज्यादा जरूरत किसी इंसान कि थी जो उनके साथ बैठ कर कुछ देर ही सही बातें करे,उनके पास बैठे,उन्हें ये अहसास दिलाए कि वो अभी भी अकेली नहीं है।
वहीं उसी शहर में एक सोसाइटी में काव्या रहती थी वो एक कॉलेज स्टूडेंट थी,सांवला से ज्यादा गहरा उसका रंग था,कमर से कुछ ऊपर तक उसके बाल थे और उसकी ऑंखे गहरी काली थी वो हमेशा एक बहुत छोटी सी नोजरिंग पहनती थी।फिलहाल उसने कानों में ईयरफोन लगाए थे जिसमें वो अंग्रेजी गाने सुन रही थी और साथ ही साथ अपनी कोई असाइनमेंट भी कर रही थी।वैसे गाने सुनना फिलहाल उसकी मजबूरी थी क्योंकी अभी उसके कमरे के नीचे हाल में उसके मम्मी-पापा के बिच में महाभारत हो रही थी।वो दोनों हमेशा छोटी सी बातों पर भी खुब लड़ते थे।
रात का वक्त,
काव्या अपने मम्मी पापा के साथ खाना खा रही थी।
काव्या-“मम्मी थोड़ा नींबू देना दाल में डालना है।”
पापा-“हम्म,बेटा अभी ये बात मैं कहता ना तो ये औरत भड़क जाती।”
मम्मी-“कहना क्या चाहते हो?”
काव्या-“मम्मी नींबू आपने हाथ में ही रखा है,मुझे दो”
पापा-“यही की दाल में नमक ज्यादा है”
मम्मी-“अच्छा तो खुद क्यों नही बनाते”
पापा-“बनाया तो तुमने भी नहीं है वो तो कामवाली ने बनाया है,पर तुम ध्यान भी नहीं दे सकती कि वो क्या कर रही है।”
काव्या-“बस करो पापा मै तो….”
मम्मी-“तुम कुछ पागल हो क्या?मै अपना काम ना करू बस उस कामवाली के पिछे रहूँ कि वो क्या कर रही है”
और लड़ाई फिर शुरु,काव्या चुपचाप अपना खाना लेकर और मम्मी के हाथों से नींबू उठा कर अपने कमरें में चली गयी।
काव्या अपने कमरें में ही थी कि उसे अपनी दोस्त का एक मैसेज आया उसने उसे एक पार्टी के लिए मैसेज किया था।उस पार्टी की एंट्री फीस 10 हजार थी,और उसमें उसके सभी दोस्त जा रहें थे उसने भी सोचा था कि उसे भी जाना था।
अगली सुबह काव्या अपने पापा के पास गयी।
काव्या-“पापा कल रात को मैने आपको एक टेक्स्ट किया था जिसमें मैने 20 हजार माँगे थे,आपने अभी तक नहीं दिये ख़ैर अभी आप कैश ही दे दीजिए।”
पापा-“किसलिए चाहिए तुम्हें पैसे?”
काव्या-“एक पार्टी में जाना है।”
पापा-“तुम्हारी पॉकेट मनी मैने अभी पिछले हफ्ते ही दी थी,और अभी फिर चाहिए।”
काव्या-“आपसे तो बात करना ही बेकार है,मम्मी आप दे दो।”
मम्मी-“आ बेटा एक्चुली हमने कुछ सोचा है,अब तुम बड़ी हो गयी हो तो अब तुम्हें हम हर महिने जो 20 हजार रुपये देते है खर्च के लिए वो नहीं देंगे,तो अब बेफिजूल की पार्टी के लिए पैसे देना का कोई सवाल ही नही उठता”
काव्या-“क्या ये किसने सोचा?”
पापा-“मैने और तुम्हारी मम्मी ने,खर्चे बढ़ रहे है तो अब से अगर तुम्हें अपने ख़र्च के लिए पैसे चाहिए तो बाकी बच्चों कि तरह नौकरी करो।हाँ हम तुमसे घर में रहने का और खाने का पैसा नहीं लेंगे और तुम्हारी कॉलेज की फिस भी भर देंगे बाकी अपना खुद देखों।”
काव्या-“मुझे समझ नहीं आ रहा कि क्या मै इस बात पर खुश हो जाऊं कि पहली बार आप दोनों ने कोई फैसला साथ मिल कर लिया है,या इस बात पर दुखी कि वो फैसला मेरे खिलाफ है।”
मम्मी-“अब क्या करें बेटा तुम्हारे पापा ने खर्च इतना बढ़ा दिया है कि क्या करे और ऊपर से लोन भी ले लिया।”
पापा-“अच्छा मैने बढ़ाया खर्चा या तुम्हारी फालतु किटी पार्टी ने और ये मेक अप जो करती हो वो?”
मम्मी-“मै किटी में अपना बिजनैस के बारे में बात करती हुँ,तुम्हारी तरह नहीं फालतु दोस्तों के साथ महंगी शराब में पैसे उड़ाती हुँ।”
और फिर लड़ाई शुरु,काव्या के मम्मी पापा एक औसत से बढ़िया मिडल क्लास परिवार थे पर खुद को वो दोनों ही जबरदस्ती एक हाई प्रोफाइल सोसाइटी में फिट करने पर लगे हुय थे।जेब में पैसा चाहे हो ना हो पार्टी में जाना और किसी से कम न दिखने के चककर में वो लोग रहते थे।
देखा जाए तो कुछ कुछ काव्या भी ऐसी ही थी,उसके महिने के 20 हजार रुपये कहाँ जाते थे उसका कोई हिसाब नहीं था।पर फिलहाल तो अब उसके सामने समस्या खड़ी हो गयी थी।
रात का समय,
काव्या अपनी सबसे अच्छी दोस्त सिमरन के घर में थी और अभी दोनों ही सिगरेट के कश लगा रही थी।
काव्या-“सिमी यार,हालत खराब कर दी मम्मी पापा ने।
वैसे तेरे मम्मी पापा कहाँ है?”
सिमी-“वो आज घर नहीं आएँगे।पर अगर तेरे मम्मी पापा ने तुझे पार्टी के लिए पैसे देने से मना कर दिया तो तु मुझ से लेले ना।”
काव्या-“नहीं यार,कुछ तो मेरे पास भी है अभी पर यूँ हीं तो नहीं जाऊँगी ना,मेक अप और भी तो बातें है।
फिर मुझें तो मम्मी पापा ने महिने का खर्चा देने से ही मना कर दिया है,अब हालत तो ये है कि मै ये सिगरेट भी नहीं पी पाऊँगी।”
सिमरन-“वैसे वो तुषार का ऑप्शन अभी है तेरे लिए उसकी गर्लफ्रेंड बन जा वो तेरा सब खर्चा उठा लेगा।”
काव्या-“कुछ ढंग कि बातें करे”
सिमरन-“ठिक है तो तू जॉब कर ले।”
काव्या-“हाँ,अब वही करना पड़ेगा पर कौन सी जॉब करु?”
सिमरन-“वैसे एक जॉब है जो तू कर सकती है।”
काव्या-“क्या”?
सिमरन-“ये देख इस एप्प कों,ये एक ऐसी एप्प है जो लोगों को आपस में जोड़ती है,मतलब कुछ लोग अकेले रहते हैं और उन्हें किसी इंसान कि जरूरत होती है बात करने के लिए,तो वो इस एप्प में अपना अकॉउंट बना कर किसी इंसान को चुन सकते है बदले में वो उस इंसान को पे करेंगे हाँ कुछ पैसे दोनों को ही एप्प को देने होंगे।बाकी सब कुछ दोनों मेम्बर आपस में तय करेंगे।
काव्या-“हाँ ऐसा कुछ तो मैने भी सुना है,जैसे रेंट पर दोस्त ले सकते है या गर्लफ्रेंड,बॉयफ्रेंड।पर मुझे किसी की गर्लफ्रेंड नहीं बनना।”
सिमरन-“अच्छा ठीक हैं,तु किसी की बेटी या पोती बन जा रेंट पर।
काव्या-“वैसे बूढ़े लोग मुझें थोड़े पकाऊ लगते है पर ठिक है।
और फिर सिमरन उसकी आईडी सिनियर लोगों कि सर्विस में बना देती है।
नीलम जी रात का खाना बना रही थी तभी कोई उनका दरवाजा खट खटाता है।वो दरवाजा खोलती है और खुश हो जाती है।
वो उनका पोता था जो उनसे कभी कभी मिलने आता था।
वो उनका पैर छूता है।
नीलम जी -“अरे आयु बेटा,खुश रहो आओ अंदर आओ।”
आयु-“कैसी है दादी आप?”
नीलम जी-“मै ठिक हुँ,बेटा तुम बताओ इतनी रात में आये हो,सब ठिक तो है न?”
आयु-“जी दादी सब कुछ ठिक है,वो कल मै लंदन जा रहा हुँ पढ़ने के लिए,तो सोचा आप से मिल लूँ!”
नीलम जी-“बहुत अच्छे बेटा ऐसे ही पढ़ों तुम।”
और वो रोनें लगी।
आयु-“दादी आप रो रही है?”
नीलम जी -“अब तो तुम भी जा रहे हो बेटा जो कभी कभी आते थे तो तुम्हारा इंतजार करती थी।पर अब तो वो भी नहीं!”
आयु(कुछ सोच कर)-“दादी आप चिंता मत करो मेरे जाने के बाद भी आप अकेली नहीं होंगी।आपके लिए मै एक इंसान रेंट पर लेता हुँ।”
नीलम जी -“मतलब”?
आयु-“एक इंसान आएगा और कुछ घंटों के लिए रोज आपके साथ वक्त बिताएगा और हम उसे इसके पैसे देंगे।
फिर आयु अपने फोन पर वही एप्प खोला और अपने शहर की लोकेशन में ही वो कोई बुजुर्ग के साथ वक्त बिताए उसे ढूंढ़ाने लगा।
उसे काव्या का अकॉउंट दिखा,फिर उसने काव्या को अपनी दादी कि रेंट की पोती बनने का ऑफर दिया।
काव्या उस वक्त ऑनलाइन ही थी,तो उसने तुरंत ऑफर ले लिया और पैसे और टाइमिंग पूछा ।
उनके बीच 15 हजार रुपये महिने का तय हुआ और वो उसे कुछ पैसे अडवांस में देने को भी तैयार हो गए।उसे दोपहर में आने को कहा गया था।
अगले दिन नीलम जी अपनी पुरानी दिनचर्या में ही डूबी हुई थी।उन्हें लगा था कि आयु ने शायद उनके साथ मजाक किया होगा ।इसलिए वो इस बात को भूल भी गयी थी कि आज उनसे मिलने कोई आने वाला है।
तभी उनकी फोन कि घंटी बजती है,वो फोन उठाती है,उनके बेटे ने फोन किया था वो उससे बात कर रही थी पर तभी उन दोनों के बिच कोई बहस हो गयी।और उनका बेटा उनपे चिल्लाने लगा और ये कहने लगा कि वो एक अच्छी मां है ही नहीं और फोन काट दिया।
नीलम जी ने ये बातें पहले भी सुन रखी थी कभी अपने बेटों के मुँह से तो कभी अपनी बेटी के मुँह से,वो इन बातों से काफी आहत होती थी।वो फिर अपनी पुरानी जिंदगी को याद करके रोने लगी,कोई उन्हें चुप कराने वाला नहीं था उनके पास और आज तो जैसे अकेले पन से उनका दुख बढ़ता ही जा रहा था।वो एक टक कहीं शून्य में देख रही थी,और दिमाग जैसे पूरा खाली हो गया था कोई विचार नहीं आ रहे थे बस वो कहीं गुम हो गयी थी।
तभी जैसे उनके शांत दिमाग में कोई हलचल हुई वो कोई आवाज लगातार आ रही थी और अचानक जैसे वो होश में आयी हो,कोई उनका दरवाजा बजा रहा था।
उन्होंने दरवाजा खोला और सामने एक दुखी मुस्कान लिए हुय काव्या थी।
काव्या-“नमस्ते मै काव्या हुँ,क्या आप नीलम जी है? जिनकी मुझे पोती बनना है।”
नीलम जी-“हाँ,अंदर आओ बेटा”
काव्या अंदर गयी,वहाँ उसे उसके उम्मीद से भी ज्यादा बढ़िया चीजें देखने को मिली।
नीलम जी-“तुम चाय पियोगी?”
काव्या-“जी मै बना देती हुँ।”
नीलम जी-“तुम तो मेरी पोती हो ना,फिर दादी के हाथों की चाय नहीं पियोगी?”
काव्या-“ठिक है दादी माँ”
कुछ देर में दोनों ही चाय कि चुस्कियाँ ले रहे थे।
काव्या-“तो आप क्या करना चाहती है?आप मुझें बता दीजिए,वैसे तो मै कुछ चीजें ले कर आयी हुँ जैसे महाभारत अगर आप मुझ से सुनना चाहे या..”
नीलम जी-“क्या तुम सिर्फ मेरे पास बैठ सकती हों?”
काव्या-“जी”
काव्या काफी देर तक नीलम जी के पास चुपचाप बैठी रही।वो दोनों ही बस खामोशी से बैठे हुय थे।
काव्या का समय हो गया था।
काव्या-“अच्छा दादी माँ अब मैं चलती हूँ,कल फिर आउंगी।”
नीलम जी-“ठिक है बेटा,अच्छा लगा तुम से मिलके।”
काव्या-“वो अगर आप कुछ पेमेंट मेरी एडवांस कर देते तो।”
नीलम जी- “ठिक है”
और वो उसे पूरे पैसे ही दे देती है।
काव्या अब अपने घर जा रही थी,तभी उसे सिमरन का फोन आ गया।
काव्या-“हैलो”
सिमरन-“हाँ,कैसा रहा आज का दिन?”
काव्या-“इट्स बॉरिंग यार,वो बस चुपचाप बैठी रही।पर उन्होंने मुझे अभी अडवांस पैसे दे दिय है।”
सिमरन-“तो तू आ रही है न पार्टी में”
काव्या-“बिल्कुल”
और पार्टी का समय भी आ गया।पार्टी क्लब में थी,सब लोग बढ़िया कपड़ो में और नशे में चूर थे,कुछ नशा नशीले पदार्थो का और कुछ पैसों का पर पार्टी में सबकी नजर एक एक बार एंट्री गेट पर चली गयी,काव्या आयी थी और वो बेहद ही अलग तरीके से बालों में हाथ फिराते हुए और सिगरेट के कश लेते हुय कार से उतरी।और एक बार फिर वो सबका अटेंशन लेने में कामयाब हुई।वो बिल्कुल अपने माता पिता के नक्शो कदम पर थी,कुछ भी करके खुद को सबसे ऊपर दिखना।
अगले दिन वो फिर नीलम जी के यहाँ पहुँच गयी।आज नीलम जी ने थोड़ा उत्साह के साथ दरवाजा खोला।
नीलम जी-“आओ बेटा,कैसी हो तुम?”
काव्या-“जी मै बिल्कुल ठिक हुँ,आप कैसी है?”
नीलम जी-“ठिक हुँ मै भी,आज हम एक फिल्म देखेंगें क्यों?”
काव्या-“जी ठिक है।”
वो दोनों फिल्म देखने लगें,
दरअसल नीलम जी काव्या के साथ थोड़ा घुलना चाहती थी।उन्हें लग रहा था कि कल के व्यवहार से वो उनके पास आना ना छोड़ दे,मगर काव्या अब भी बोर हो रही थी उनके साथ फिल्म देख कर।
ऐसे ही एक हफ्ता बित गया,काव्या नीलम जी के घर रोज आती थी और वो दोनों ही कुछ समय साथ बिताते थे।पर काव्या को वो काफी बोर लगती थी,उसके हिसाब से वो तो बस यहाँ अपना काम करती थी मगर नीलम जी को तो काव्या के साथ समय बिताना बहुत अच्छा लगता था।वो दोनों ही काफी बातें करते थे।
एक दिन जब काव्या नीलम जी के घर आयी तो उसने देखा कि आज नीलम जी काफी उदास है।
काव्या-“क्या हुआ दादी माँ?आप काफी उदास लग रही है।”
नीलम जी-“आज मेरी नातिन का जन्मदिन है,मैने तब से कितने ही बार फोन कर दिया पर उसने नहीं उठाया और जब उठाया तो मेरी बेटी ने बात कि और सिर्फ इतना कह कर फोन रख दिया कि सब लोग व्यस्त है तो बाद में बात करेंगे।”
वो सच में काफी दुखी थी,काव्या उनके पास बैठी रही और थोड़ी देर में वो उठ कर गयी और वो उनके लिए उनका मनपसंद हलवा ले आयी।
काव्या-“दादी मां,देखिये मैने आपके लिए हलवा बनाया है”
नीलम जी-“अरे बेटा,इतनी मेहनत क्यों करी तुमने?”
काव्या-“अरे खा कर तो बताइए कैसा बना?”
नीलम जी-“बहुत अच्छा है,तुम भी खाओ”
काव्या मुस्कुराते हुए उन्हें देख रही थी,उसे खुद भी नहीं मालुम था कि वो उन्हें उदास देखकर उसे क्यों फर्क पड़ रहा है वो तो यहाँ पैसे के लिए थी ना फिर…
उन दोनों ने कुछ देर तक बात की ,फिर काव्या जाने को तैयार हो गई ,तो नीलम जी ने हमेशा कि तरह उसका सर सहला दिया और आज तो उन्होंने उसके माथे को भी चूमा।
काव्या को ये अच्छा लगा,ना जाने क्यों पर उसे अच्छा लगा।
अगले दिन,
काव्या फिर नीलम जी के घर गयी और आज वो उनके लिए एक फिल्म देखने का सोच कर आयी थी।दोनों साथ में बैठकर फिल्म देख रहे थे,तभी नीलम जी ने काव्या से अपना सुई-धागा वाला डिब्बा मंगाया जो ऊपर के कमरे में था,काव्या उसे लेने ऊपर गयी वहाँ नीलम जी कि डाएरी थी।
काव्या ने डायरी खोली और पढ़ने लगी।
(मै अब बिल्कुल ठिक नहीं हुँ हालांकी मै ये दिखावा जरूर करती हुँ ठिक होने का,आज कुछ बच्चे मेरे घर के सामने खेल रहे थे मेरा भी बहुत मन किया उनके पास जाने का मगर जैसे ही मै उनके पास गयी वो चले गये शायद कुछ मुझसे डर भी गये।मुझे समझ नहीं आया फिर जब मैने आईने में खुद को देखा तो लगा हाँ उन बच्चो का डरना कोई बड़ी बात तो नहीं।मै अब काफी बूढ़ी हो चुकि हुँ अब तो मुझे खुद का होश भी नहीं रहता है और शायद बुढ़ापे की वजह से कुछ बदबु भी आती है।मै अब बिल्कुल अकेली हुँ,कोई ऐसा नहीं जिससे मैं कुछ देर ही सही बातें कर पाऊँ कभी कभी तो खुद को मारने का भी दिल करता है इस घुटन भरी जिंदगी से आज़ाद होने का मन करता है।पर फिर नहीं करती हुँ मै ये मगर यूँ अकेले रहना अब और नहीं सहा जाता शायद मेरी मौत भी ऐसे ही हो और लोगों को मेरे मरने का भी पता न चले शायद तब चले जब मेरी लाश में से बदबू आने लगे।)
काव्या ये पढ़कर दुखी हुई,उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वो आगे क्या करें।
रात के वक्त,
काव्या अपने कमरें में थी,वो नीलम जी के बारे में काफी गहराई से सोच रही थी।उसे अब समझ में आ रहा था कि जब वो पहले दिन उनके घर गयी थी तो वो खामोश क्यों थी,शायद वो किसी इंसान कि मौजूदगी के एहसास को महसुस कर रहीं थी।
और उनका काव्या के साथ घुलने कि कोशिश करना भी उनके अकेलेपन के एहसास को दर्शाता था।और फिर काव्या खुद के अंदर झाकने लगी,क्या वो खुद अकेली नहीं है?भले ही उसके पास परिवार है,दोस्त है,वो पार्टी करती है पर फिर भी इन सब कि भीड़ में क्या वो अकेली नहीं है?वो तो बस भीड़ का हिस्सा है और भीड़ के पिछे भाग रही है जैसे सब करते है।पर वो अपनी दिल की बात या कोई सुकुन का पल वो किसी के साथ बिता सकती है?शायद नहीं!उसके मम्मी पापा को भी अपने काम और झगड़े से फुर्सत नही थी और उसके दोस्त भी इस तरह के नहीं थे।अब उसे महसुस हो रहा था कि वो खुद भी कितनी अकेली है,और वो नीलम जी और खुद को एक जैसा ही देख रही थी अब कहीं ना कहीं उसे लग रहा था कि शायद वो भी अपने बुढ़ापे में ऐसी ही स्थति में आ जाए।
काव्या अब नीलम जी के ओर भी करीब आने लगी।धीरे धीरे वो दोनों ही एक दुसरे से काफी बातें बाटने लगे,दोनों के लिए ही ये समय बहुत किमती था।वो दोनों साथ में काफी बातें करते,नीलम जी अपने जमाने की बातें बताती और काव्या उन्हें नयी चीजों के बारे में बताती।कभी काव्या नीलम जी के बालों में तेल लगाती तो कभी नीलम जी काव्या को अपने जमाने का हैरस्टाइल कर देती फिर दोनों फोटों खींचते।
काव्या नीलम जी को आयु से विडियो कॉल पर भी बात करा देती थी।दोनों ही साथ मिलकर खाना बनाते पौधे लगाते बाहर घुमने जाते,फिल्मे देखते और ढेर सारी बाते करते।काव्या अब तो पूरा पूरा दिन उनके साथ रहती थी वो वहीं से अपनी पढ़ाई करती थी।
एक बार काव्या नीलम जी की शादी और कॉलेज की तस्वीर देख रही थी।
नीलम जी-“इतने गौर से क्या देख रही हो?”
काव्या-“आप बहुत खूबसूरत थी,अब आपको देख कर ये अंदाजा लगाना थोड़ा अजीब लगता है कि कभी आप जवानी में इतने खुबसूरत भी हो सकते थे।”
नीलम जी-“हट पगली,एक दिन सब जवान होते है और सब बूढ़े तुम भी होगी!”
काव्या-“हाँ,और एक दिन मै भी अकेली हो जाऊँगी है न”
नीलम जी-“इतना मत सोचों,अच्छा बताओ तुम्हारा कोई बॉयफ्रेंड है?”
काव्या-“नहीं”
नीलम जी-“क्यों नहीं है?आजकल तो सब का होता हैं”
काव्या-“क्योंकी मुझें नहीं पसंद,मेरे मम्मी पापा और मेरे दोस्त सब लोग रिलेशनशिप में नहीं सिचुएशनशिप में है,आजकल यही चलता हैं।”
नीलम जी-“वो क्या होता है?”
काव्या-“आप ना ही समझे तो बेहतर है क्योंकी ये सिचुएशनशिप मुझे भी समझ नहीं आती”
नीलम जी-“आजकल सब कुछ कितना उलझा हुआ हो गया है न”
काव्या-“बहुत”
नीलम जी-“तो इसलिए तुम सिगरेट पिती हो,स्ट्रेस कम करने के लिए?”
काव्या-“हाँ,एक मिनट आपको पता है कि…”
नीलम जी-“हाँ,और मैं तो यही चाहती हुँ कि तुम छोड़ दो”
काव्या-“कभी कभार पीती हुँ,कोशिश करुँगी वो भी छोड़ने कि”
नीलम जी मुसुकुरा देती है तो बदले में वो भी मुसुकुरा देती है।

दिन बितते रहते है और उन दोनों का रिश्ता मजबूत होता रहता है।पर अब नीलम जी काफी कमजोर हो रही थी अब वो अपनी दैनिक कार्य करने में भी सक्षम नहीं थी।अब काव्या अपने घर से लड़कर हमेशा ही नीलम जी के साथ रहती थी और वो उनकी दैनिक कार्य करने में और समय से दवाई लेने में भी मदद करती थी।
रात का समय
काव्या नीलम जी के पैर दबा रही थी और नीलम जी उसे काफी गौर से देख रही थी।
नीलम जी-“पता नहीं मैने ऐसा कौन सा अच्छा काम किया था,जो मुझे तुम मिली।”
काव्या(हस्ते हुय)-“मुझें बुक करने का अच्छा काम”
नीलम जी-“इतना तो मुझे मेरे बच्चों से और अपने पोतो या पोती से भी कोई खुशी नहीं मिली।”
काव्या-“जरूरी नहीं कि खुशी हमेशा खुन के रिश्ते दे,आप भी तो मुझे खुशी देती है”
नीलम जी-“बेटा अब मैं अपने आखिरी वक्त में हुँ,अभी सिर्फ तुम हो मेरे पास पर मेरे मरने के बाद मेरे दोनों बेटे और उनकी पत्नियाँ और मेरी बेटी-दामाद सब आयेंगे अपना हिस्सा लेने।फिर वो तुम्हें कुछ नहीं देंगे और मै अपनी तरफ से तुम्हें कुछ देना चाहती हुँ,बताओ क्या चाहिए तुम्हें तुमने तो मेरे सारे जेवर और कीमती समान देखे है न”
काव्या-“आप कैसी बात कर रही हो दादी माँ,मैं आपकी पोती हुँ ! मुझे कुछ नहीं चाहिए”
कुछ देर बाद काव्या उन्हीं के पास सो गयी पर नीलम जी के आँखों में नींद कहाँ वो पूरी रात काव्या को देखती रही।
सुबह जब काव्य उठी तो नीलम जी की तबियत काफी खराब थी,उनकी सांसे भी रुक सी गयी थी।वो घबड़ा गयी उसने उन्हें वहाँ के मशहूर अस्तपताल में एडमिट किया और आयु को फोन कर दिया।
कुछ समय में उनका बेटा भी पहुँचा जो उसी शहर में रहता था।
वो वहाँ चार दिन तक एडमिट रही ,इन दिनों में काव्या एक बार भी अस्तपाल से नहीं हिली चाहे कोई कितना भी समझा ले।आयु फ्लाइट से उतर गया था और वो असतप्ताल आने वाला था,पर अभी सिर्फ काव्या थी नीलम जी के पास और तभी नीलम जी काव्या को देखकर मुसुकुराई और उन्होंने उसका हाथ पकड़ लिया,तभी वहाँ पर आयु आ गया।नीलम जी ने कस कर काव्या का हाथ पकड़ रखा था और उन्होंने एक नजर आयु पर डाली और फिर उनकी आँखें बंद हो गयी।
काव्या और आयु दोनों रोने लगे पर नीलम जी के चेहरे पर मुस्कान थी, सुकून न कि मुस्कान शायद जाते वक्त उनके चाहने वाले काव्या और आयु उनके पास थे इसलिए।
जैसा कि नीलम जी ने बताया था उनके जनाज़े में उनके शहर में रहने वाले बेटे और बहु थे,उनकी बेटी दामाद थे,उनका विदेश में रहने वाला बेटा था।और भी कई रिश्तेदार और दोस्त थे जो अपने आप को शुभचिंतक कहते है।
नीलम जी को अग्नि उनके बड़े बेटे ने दी क्योंकी उनके हिसाब से वो इसके हक़दार थे और उनके मां को इसके बगैर शांति नहीं मिलेगी।पर शायद काव्या ये बात जानती थी कि नीलम जी को शांति तो उसने ही दी थी और आखिरी बार भी वो ही थी उनके साथ।
उनके सारे क्रिया कर्म हुय और क्रिया कर्म के बीच ही तीनों ने अपने अपने हिस्से भी बाँट लिए।
और उनके लिए अब बात ख़तम हो गयी।
पर काव्या अब तो जैसे उसके लिए सब बदल गया था उसने तो नीलम जी के जरिये बुढ़ापे का अकेलापन और जीवन की कड़वी सच्चाई को महसुस कर लिया था।
और अब वो वो सारी बाते किससे करेगी।उसे अकेलेपन और उदासी ने घेर लिया था।
अभी फिलहाल आयु और काव्या एक पार्क में थे,अगले दिन वो वापस जाने वाला था।
आयु-“तो क्या सोचा है तुमने आगे क्या करोगी ? ग्रेजुएशन तो हो गयी तुम्हारी”
काव्या-“एक कम्पनी में फिलहाल इंटरन करना है,कल से ज्वाइन करना हे”
आयु-“ओ,अच्छा है”
काव्या ने कुछ नहीं कहा।
आयु-“वैसे तुम्हारा बहुत शुक्रिया,तुमने जो भी दादी के लिए किया…”
काव्या-“वो मेरी भी दादी माँ थी”
आयु-“मैं यही चाहुंगा कि तुम मूव ऑन कर लो,अगर कोई भी जरूरत हो तो बताना”
काव्या-“हम्म,अपना ख्याल रखना”
आयु-“तुम भी”
और फिर काव्या भारी कदमों से उठकर वहाँ से चली जाती है,उसे काफी अकेलापन महसूस हो रहा था उसने सिगरेट निकाली पर फिर कुछ सोच कर उसने फेक दि और आगे बढ़ गयी।

sadhanasource.com

My name is Sadhana Bhushan. I love to write which I feel from my heart. Its journey has been started since my childhood. In My college day lots of articles and story has been published in local newspaper. I know Maithili, Hindi, Magahi and English. May be my English could be not strong because I have started English after my marriage while I had to do post-graduation in journalism. So, I have two degrees in post-graduation first in economics (Magadh university Patna) 2nd in journalism (Sikkim Manipal University). diploma in journalism from Magadh university Patna after film direction and production course from AAFFT. Then Join Sadhana News as an Intern coincidently. Where I have learned so many things. family and career were not going smoothly so I Have decided to write from home and my happiness not for earning It comes from writing. in lockdown period I have written 300 more than articles, story and so many things Whatever nobody was judging me because it was free, and I have learned so many things proper way to writing then journey has been started. Matram India where my First story has been published. and Pratilipi and more than two portals 9news but I was not satisfied then I have started my own website sadhana sources. Now a days three people are working with me. ( हालत कभी आसन नहीं थें . राह बहुत मुश्किल थी . अर्थशास्त्र में मास्टर हिंदी भाषा में करने के बाद इंग्लिश सीखी ताकि जर्नलिज्म की किताबें पढ़ सकूं . 2008 में डिप्लोमा किया था लेकिन घरवालों ने काम नहीं करने दिया की लड़कियों के लिए ये ठीक नहीं . मैंने बहुत से मेडल्स कॉलेज में जीता था पर सबको लगता था की अगर हाथ पैर टूट गया तो कौन शादी करेगा और मुझे बहार खेलने के लिए नहीं जाने देते थें . मैंने बात मान ली लेकिन सपने को छोड़ा नहीं . फिर उनकी बात मानकर शादी कर ली ताकि राजधानी में मेरा कुछ भला हो सके .फिर मैंने फिल्म प्रोडक्शन और जर्नलिज्म में मास्टर किया .कंप्यूटर में डिप्लोमा किया घर के साथ कुछ न कुछ करती रही . प्रोडक्शन के बाद मुझे बाहर जाने का अवसर मिला था लेकिन वही बात महिला को बाहर जाने का कोई प्रोयजन नहीं मैं चुप रही पर मेरे सपने मुझे सोने ही नहीं देते थे फिर मैंने जैसे तैसे साधना न्यूज़ में इंटर्नशिप किया लेकिन घर से 30 किलोमीटर जाना और 30 किलोमीटर आना आसान नहीं था क्यूंकि अब घर में मेरा बेटा भी था जिसको मेरी ज्यादा जरुरत थी . लेकिन सपने मेरी उम्र के साथ बढ़ रह थें . फिर मैंने ऑनलाइन लिखना शुरू किया और ये सफ़र अभी भी जारी है और उम्र के आखिरी पड़ाव तक चले इतनी सी तमन्ना है . मैं अक्सर ये सोचती थी की क्या करुँगी इतना सब सर्टिफिकेटस का सब बेकार हैं .लेकिन अब जब लिखना शुरू किया तो सब की जरुरत होती है तो अच्छा लगता है. बस मैं इतना कहना चाहती हूँ की अगर आपने सपने देखें हैं तो उसको पूरी करने की जिम्मेदारी भी आपकी ही है और जब आप सोने जाएँ तो सपना आपको सोने न दे . और उस सपने को पूरा करने के लिए अपने व्यस्त दिनचर्या से थोड़ा समय जरुर निकालें वरना आप जिन रिश्तों में उलझे हैं वही सबसे पहले ताने मारते है और वो ताना चुभता बहुत है ; क्यूंकि ये सब मेरे साथ हो चूका है . साधना भूषण

One thought on “तन्हा सफ़र

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *