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पिंक ब्लू

आज सुबह किसी काम से बाहर जा रही थी, तो देखा एक आदमी walk कर रहा था। नॉर्मल सी बात थी। मैंने बस उसको सरसरी निगाह से देखा। सब कॉमन था, लेकिन दिल्ली के बिजी सड़कों पर गाडियां जा रही है आ रही हैं और साइड में कोई दौड़ रहा हो तो नज़र जानी कोई बहुत बड़ी बात नही थी, लेकिन मेरी नज़र उसके चमचमाते जूतों पर गई तो उधर ही ठहर गई। क्योंकि भाई साहब ने एकदम डार्क पिंक कलर के जूते पहन रखे थे। जो हैरानी की बात थी। जो शायद मैंने पहली बार देखा था।

एक उम्र तक मुझे भी नही पता था कि रंगो का बंटवारा होता है। जब तक मां नही बनी थी। तब तक नही पता था लेकिन जैसे मेरा बेटा हुआ। मैं अस्पताल के बेड पर एंथेसिया सुई के नशे में थी लेकिन पूछ रही थी कि क्या हुआ? डॉक्टर ने बताना जरूरी नहीं समझा। सीधे बच्चे को ब्लू कपड़े में लपेट कर दे दिया। यानी ब्लू है तो लड़का हे। भगवान क्या है। लोगों ने रंगो को क्यों बांट दिया? क्यों ये विभाजन और अगर आपको लड़की हुई तो पिंक कपड़े में देंगे? हो सकता है बहुत लोगों को मालूम हो लेकिन बहुत से ऐसे भी तो लोग होंगे जिन्हें उम्र के दूसरे या तीसरे चरण में पता चले। जैसे आप किसी लड़के के लिए गिफ्ट ले जा रहे हैं और पिंक ले गए। तो पैसे भी गए और सामने वालों के लिए वो कोड़ी भाव गया।

एक बार मेरे भाई को पता नहीं था। वह एक लड़के के लिए बार्बी बनी हुई गुड़िया वाला वाटर बॉटल ले गया। पैसे तो लगे और उसे उस बच्चे की बहन ने उससे ले लिया। उस बच्चे ने तो ऐसा सुलूक किया, जैसे हमने गिफ्ट दिया ही नहीं। हमारे तो पैसे भी गए और बच्चों के नजर में हम बुद्धू भी बन गए। इन्हे तो फैशन का सेंस ही नही।

मेरा बेटा जब तीन साल का हुआ, तो जाने कौन से देवता ने उसके कान के अंदर ये मंत्र फूंक दिया ब्लू फॉर बॉय एंड पिंक फॉर गर्ल्स। अब क्या ही बताएं। हमारे घर की दीवार ब्लू, बाल्टी ब्लू, बाथरूम ब्लू, मग ब्लू, bat ब्लू, बॉल ब्लू, कार ब्लू, (मेरी तो ग्रे है) खिलौने वाले कार वो भी ब्लू, बेडशीट ब्लू, नज़र के सामने वो गाना चलता था आज ब्लू है पानी पानी।

एक दिन मिहिर के पापा क्रिसमस पर पिंक साइकिल ले आए और बेटे को बताया कि संता ने दिया है। उन्हे ज्यादा पता तो नही था लेकिन साइकिल एक ही बची हुई थी। सो बेटे के लिए ले लिया। अब मिहिर रोज़ संता से प्रार्थना करता, “प्लीज संता इसको चेंज करो। मैं आपको चॉकलेट दूंगा।” अब बेचारे मिहिर के पापा को इतना गहरा झटका लगा कि अब जब उनकी बेटी मीरा दुनिया में आई तो उसका सबकुछ पिंक पिंक कर दिया। अब तो हम किसी बच्चे को गिफ्ट देते हैं, तो पहले चेक कर लेते हैं।

यह भेदभाव खिलौने तक ही सीमित नहीं है। बच्चों का एक चॉकलेट आता है किंडर जॉय। आजकल के बच्चों को बहुत पसंद है। उसके अंदर टॉय होते हैं। वो बहुत ही अट्रैक्टिव होते है। एक बार हमारे मौसा जी सीधे दस किंडर जॉय ले आए कि बाबू को ये पसंद है तो उसे खुश कर दें लेकिन उसमें आधे से अधिक पिंक थे। भाईसाहब पिंक और ब्लू का खेल तो यहां भी चल रहा था। ब्लू कलर वाला खोले तो उसमें कार, एयरोप्लेन, इस तरह के खिलौने और पिंक वाले खोलें तो परी और मेकअप के समान। वो दिन और आज का दिन। हमारे पूरे खानदान को पता चल गया कि रंगो का विभाजन हो चुका है।

बाबू मुश्किल से तीन वर्ष का होगा। मेरे मौसा जी एक वरिष्ठ वकील है। उन्हें भी नही पता था। मेरे बेटे ने इतनी शिकायत की कि अब तो उस इलाके के सारे दुकानदार को पता चल गया कि वकील साहब के नाती ने सबको बता दिया कि ब्लू लड़के के लिए है। उनका ही इस रंग पर कॉपी राइट है। खैर अब वो सात साल का है। उसके लिए अब भी चॉकलेट आते है और उसी पार्टिकुलर कलर का।

आज फोन की घंटी बजी। लगा जाने किसका फोन है सुबह सुबह? संडे को भी चैन से नहीं सो पाती। सामने वाली पड़ोसन मेरे से कह रही थी कि बाबू को भेज देना। आज अभिनव का बर्थडे है। वो कह रहा है कि जब तक मेरा फ्रेंड नहीं आएगा, तब तक मैं केक नही काटूंगा। सो आप अपने लड़के को भेज देना। अरे भाई इतने से बच्चे के साथ तो जाना पड़ेगा। तो आश्वाशन देकर मैंने फोन रख दिया। लेकिन घर में कोई नहीं था। पति और भाई दोनों आउट ऑफ स्टेशन गए थे। अब बात हुई गिफ्ट की। अब क्या करे? सामने भईया की क्रॉकरी की दुकान है। उसमें लंच बॉक्स या पानी की बॉटल मिलेगी। फिर याद आया कि अभी बाबू के लिए लिया था। उसमें गर्म और ठंडा जैसा पानी रखो वैसा रहेगा। तो डिसाइड तो कर लिया।

अब दुकान वाले भईया को कहा कि वो वाली बॉटल दे दीजिए। भईया बोले अरे वो तो खत्म। आखिरी था, जो आपने लिया। अब क्या करें? मैने बोला भईया ऐसा है इसका दोस्त केक नही काटेगा अगर ये नही जायेगा और गिफ्ट लेने मार्केट जायेंगे तो इनके लिए भी लो और पैसे दूंगी तो 500 से कम क्या दूंगी? मैं साल भर इसके दोस्तों को गिफ्ट देती हूं और इसका तो जून में आता है। गर्मी की छुट्टी होती है। आगे क्या ही बोलूं…।

भईया हॅसते हुए बोले, “ठीक है शाम को ले आऊंगा।” शाम हुई भईया ने बॉटल भिजवाई। कलर चेक किया तो डार्क पिंक। ओह शिट ये क्या हुआ? मैंने भईया को फ़ोन मिलाया। भईया ये क्या कर दिया आपने? भईया बोलें क्या हुआ? वो हमने कहा पिंक कलर क्यूं? वो बोलें अरे कितना सुंदर रंग है? अदभुत गुलाबी। उनका वर्णन सुनकर मैंने अपना वृतांत सुनाया। भईया ये सब चल रहा मार्केट में। उन्हें भी बहुत हैरानी हुई। फिर उन्होंने ब्लू रंग का बॉटल भेजा और उसकी पैकिंग हुई ब्लू कलर के सुंदर चमचमाते रैपर के साथ। उस पर ब्लू रैपर बना और ब्लू पैन से लिखवाया अभिनव पांडे और फिर मेरा बेटा ब्लू शर्ट पहन कर, हम चले पार्टी में। सब हुआ केक कटिंग।

अभिनव ने हमारे गिफ्ट को खोला। खुश तो बहुत हुआ और रैपर पैकिंग तो एक कोने में गई। उसने तो ठीक से देखा भी नहीं, उस ब्लू पैकिंग को। अगले दिन वो कचड़े के डिब्बे में होगा। हमारे देश में रिसाइक्लिंग का प्रोसेस भी नही है। वो रोड पर ही रहेगा। क्या ही मतलब रहा इतना ब्लू ब्लू करने का। मेरी तो समझ में नहीं आता। खैर बच्चों की खुशी लेकिन सोचने पर मजबूर हो जाती हूँ कि बच्चा दुनिया में आया नही कि भेदभाव उसको करना सीखा दिया। पहले कपड़े, फिर खिलौने, फिर गिफ्ट। मतलब जब तक बच्चे बड़े होंगे, वो परिपक्त हो जायेंगे। लड़का, लड़की, फिर जाती पर फिर उसके बाद क्या क्या होता है? तो ये सब बोलने वाली बात नही, समझने वाली बात है।

मैं इस लेख के ज़रिए ये कहना चाहती हूं कि जो चीजें बचपन में होती है। हमारे मानस पटल पर छाप छोड़ देती है, हमेशा के लिए। ऐसा नही है कि मैंने कोशिश नही की, अपने बेटे के दिमाग से ये बात निकालने की लेकिन वो ऐसे समाज में बड़ा हो रहा है कि अगर आपको ब्लू और पिंक का ज्ञान नही है, तो आपको कुछ नही पता। इसका ज्ञान भी कोई ज्ञान हुआ। मतलब कुछ भी। मेरे बेटे ने भी ये चीज अपनेआस-पास से ही सीखी है। हमें इस पर मिलकर ध्यान देने की जरूरत है। वरना जैसे हर बात के लिए रिवॉल्यूशन होता है सॉफ्टवेयर रिवॉल्यूशन, वैसे ही कलर रिवॉल्यूशन आ जायेगा। ये बच्चे बड़े हो जायेंगे। अभी छोटी छोटी बातों के लिए जिद कर रहे है। कल बड़ी बड़ी बातों में लड़ेंगे। भेदभाव करेंगे। ये दिखने में जितना छोटा लगता है, उतना ही बड़े मुद्दे को अपने आप में छुपा रखा है।

वैसे कई जाने माने अभिनेता इस मुद्दे को समझ रहे हैं। मैंने अभिनेता करण मेहता को भी देखा था कि वो पिंक कलर अधिकतर पहनते हैं। उनके बच्चे के दिमाग में ये बात न बैठ जाए कि पिंक कलर पर सिर्फ लड़कियों का कॉपीराइट है। हमें भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए। मैंने तो दिवाली पर अपने बेटे को और उसके पापा को पिंक ही दिलाया। बेचारे मेरे पति ने खुश होकर पहना। उनके पास ये कलर था नही तो बेटे ने नखरा दिखाया। मैने उसे समझाते हुए बोला कि इस पूजा में मैचिंग ही पहनते हैं।

खैर मुद्दे की बात ये है कि पिंक और ब्लू, लाल और हरे के साथ भेदभाव न करें। वर्ना ये अंदर ही अंदर आपके नफरत की आग कब आ जायेगी पता भी नहीं चलेगा। यह बहुत ही नुकसान दायक होगी।

Written by Sadhana Bhushan

sadhanasource.com

My name is Sadhana Bhushan. I love to write which I feel from my heart. Its journey has been started since my childhood. In My college day lots of articles and story has been published in local newspaper. I know Maithili, Hindi, Magahi and English. May be my English could be not strong because I have started English after my marriage while I had to do post-graduation in journalism. So, I have two degrees in post-graduation first in economics (Magadh university Patna) 2nd in journalism (Sikkim Manipal University). diploma in journalism from Magadh university Patna after film direction and production course from AAFFT. Then Join Sadhana News as an Intern coincidently. Where I have learned so many things. family and career were not going smoothly so I Have decided to write from home and my happiness not for earning It comes from writing. in lockdown period I have written 300 more than articles, story and so many things Whatever nobody was judging me because it was free, and I have learned so many things proper way to writing then journey has been started. Matram India where my First story has been published. and Pratilipi and more than two portals 9news but I was not satisfied then I have started my own website sadhana sources. Now a days three people are working with me. ( हालत कभी आसन नहीं थें . राह बहुत मुश्किल थी . अर्थशास्त्र में मास्टर हिंदी भाषा में करने के बाद इंग्लिश सीखी ताकि जर्नलिज्म की किताबें पढ़ सकूं . 2008 में डिप्लोमा किया था लेकिन घरवालों ने काम नहीं करने दिया की लड़कियों के लिए ये ठीक नहीं . मैंने बहुत से मेडल्स कॉलेज में जीता था पर सबको लगता था की अगर हाथ पैर टूट गया तो कौन शादी करेगा और मुझे बहार खेलने के लिए नहीं जाने देते थें . मैंने बात मान ली लेकिन सपने को छोड़ा नहीं . फिर उनकी बात मानकर शादी कर ली ताकि राजधानी में मेरा कुछ भला हो सके .फिर मैंने फिल्म प्रोडक्शन और जर्नलिज्म में मास्टर किया .कंप्यूटर में डिप्लोमा किया घर के साथ कुछ न कुछ करती रही . प्रोडक्शन के बाद मुझे बाहर जाने का अवसर मिला था लेकिन वही बात महिला को बाहर जाने का कोई प्रोयजन नहीं मैं चुप रही पर मेरे सपने मुझे सोने ही नहीं देते थे फिर मैंने जैसे तैसे साधना न्यूज़ में इंटर्नशिप किया लेकिन घर से 30 किलोमीटर जाना और 30 किलोमीटर आना आसान नहीं था क्यूंकि अब घर में मेरा बेटा भी था जिसको मेरी ज्यादा जरुरत थी . लेकिन सपने मेरी उम्र के साथ बढ़ रह थें . फिर मैंने ऑनलाइन लिखना शुरू किया और ये सफ़र अभी भी जारी है और उम्र के आखिरी पड़ाव तक चले इतनी सी तमन्ना है . मैं अक्सर ये सोचती थी की क्या करुँगी इतना सब सर्टिफिकेटस का सब बेकार हैं .लेकिन अब जब लिखना शुरू किया तो सब की जरुरत होती है तो अच्छा लगता है. बस मैं इतना कहना चाहती हूँ की अगर आपने सपने देखें हैं तो उसको पूरी करने की जिम्मेदारी भी आपकी ही है और जब आप सोने जाएँ तो सपना आपको सोने न दे . और उस सपने को पूरा करने के लिए अपने व्यस्त दिनचर्या से थोड़ा समय जरुर निकालें वरना आप जिन रिश्तों में उलझे हैं वही सबसे पहले ताने मारते है और वो ताना चुभता बहुत है ; क्यूंकि ये सब मेरे साथ हो चूका है . साधना भूषण

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