बाल विवाह को अमान्य घोषित करने के लिए पति की याचिका की समय-सीमा 18 वर्ष से शुरू होती है या 21 वर्ष से? ये सवाल उठा है सुप्रीम कोर्ट में जिसे जल्द ही न्यायालय तय करेगा
सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें ये मुद्दा उठाया गया कि Prohibition of Child Marriage Act के तहत विवाह को निरस्त करने की याचिका दायर करने के लिए समय-सीमा की गणना करते समय पुरुषों के लिए majority की आयु 18 वर्ष होनी चाहिए या 21 वर्ष?

जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिकाकर्ता जो की इस मामले में एक पत्नी है, उसकी याचिका पर विचार करते हुए यह आदेश पारित किया, जिसमें प्रतिवादी यानी पति के प्रार्थना को स्वीकार किया गया कि उनके विवाह को अमान्य घोषित किया जाए भले ही विवाह निरस्त करने के लिए आवेदन तब किया गया हो जब वो लगभग 23 वर्ष का था।

Prohibition of Child Marriage Act के Section 3(3) के तहत कोई भी व्यक्ति जो अपने विवाह के समय बच्चा था, चाहे वो इस Act के लागू होने से पहले या बाद में हो, विवाह निरस्त करने के लिए आवेदन कर सकता है। हालांकि ये इस बात पर निर्भर करता है कि विवाह रद्द करने की याचिका ऐसे व्यक्ति की वयस्क यानी कि Majority attain होने के दो वर्ष के भीतर दायर की जाए।

वर्तमान मामले में पुरुष की आयु 12 वर्ष और महिला की आयु 9 वर्ष बतायी गई, जब दोनों ने विवाह किया था। साल 2013 में पति ने Hindu Marriage Act, 1955 के Section 2,1(1) के तहत विवाह रद्द करने की मांग करते हुए मुकदमा दायर किया। इसके बाद उसने Prohibition of Child Marriage Act के Section 3 को लागू करने के लिए मुकदमे में संशोधन करने की मांग की, जिसकी अनुमति दी गई।

मामले में आगे Family Court ने मुकदमा खारिज कर दिया, ये देखते हुए कि इसे दायर करने से पहले पति ने Hindu Marriage Act के Section 13 के तहत तलाक़ का मामला शुरू किया, जिसे उपस्थित न होने के कारण खारिज कर दिया गया, लेकिन विवाह की वैधता की पुष्टि की गई, जिसके बाद पति ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया और हाइकोर्ट ने उसके पक्ष में निर्णय दिया और विवाह को अमान्य घोषित कर दिया।

हाइकोर्ट ने पाया कि मुकदमा दायर करने के लिए उसके पास 23 वर्ष की आयु तक की समय-सीमा उपलब्ध थी, जबकि विवाह को अमान्य घोषित कर दिया गया। हाइकोर्ट ने पत्नी को ₹25 लाख के स्थाई गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। इस निर्णय को चुनौती देते हुए पत्नी ने वर्तमान याचिका दायर की।

वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता ने कहा कि हाइकोर्ट के निर्णय ने बाल विवाह को निरस्त करने के लिए मुकदमा दायर करने की समय-सीमा को 23 वर्ष की आयु तक बढ़ा दिया और ये Prohibition of Child Marriage Act के Legislative Purpose, Constitutional Principles, और Protective Ethos के साथ मेल नहीं खा रहा, उनके अनुसार पति द्वारा विवाह को निरस्त करने के लिए दायर किया गया मुकदमा समय सीमा द्वारा वर्जित था, क्योंकि Majority Age यानी 18 वर्ष प्राप्त करने के दो वर्ष बाद दायर किया गया।

इस संबंध में Prohibition of Child Marriage Act के Section 2(f) और The Majority Act के Section 3(1), जिसके अनुसार भारत में निवास करने वाला व्यक्ति 18 वर्ष की आयु पुरी करने पर वयस्कता प्राप्त करता है, यानी Major हो जाता है, इस पर भरोसा किया गया।

उठाए गए आधारों में अन्य बातों के साथ साथ ये भी शामिल है कि पुरुषों को 23 वर्ष की आयु तक विवाह रद्द करने की अनुमति देकर जबकि महिलाओं को 20 वर्ष तक सीमित कर के हाइकोर्ट की व्याख्या संविधान के अनुच्छेद 14 में निहित समानता के सिद्धांत यानी Principle of Equality का उल्लंघन करती है। अब सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर अंतिम निर्णय करेगा जो बाल विवाह निरस्त करने के लिए समय-सीमा को Define करने के लिए जरूरी है।

साभार:- Live Law Hindi
Pic Credit: – Live Law
By: – Rajat Ranjan
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