बिहार में सिर्फ सूर्य को नहीं, चांद को भी अर्घ्य देते है- पता है ?
तो बिहार में एक पर्व है “चौरचन”, जिसमें चांद को अर्घ्य दिया जाता है, लेकिन इससे पहले ज़मीन पर चावल के घोल से एक रंगोली बनाई जाती है (जिसे बिहार में “अर्पिण” भी कहा जाता है), और उस रंगोली पर “डाला”, जो बाँस से बना होता है, वो सजाया जाता है, “मटका”, जिसमें होती है दही और उस पर खीर और पुरी होती है। जब पूजा समाप्त हो जाती है चांद की और गणेश भगवान की, तो फिर लोग आते हैं और उस मटके को या फिर जो डाला रहता है उसको हाथ में उठाकर अपने सिर से लगाते हैं फिर उस डाले को रख देते हैं, वो प्रसाद फिर खाया जाता है।

अब सवाल यह है कि ये पर्व मनाया क्यों जाता है?

तो इसके लिए हमें 16वीं शताब्दी में चलना पड़ेगा, जब मिथिलांचल के राजा हुआ करते थे हेमनगढ़ ठाकुर। उन्होंने मुग़ल बादशाह अकबर को कर (Tax) देने से मना कर दिया, मुग़ल बादशाह ने आदेश दिया कि उन्हें कैद करके दिल्ली लाया जाए।

कारागार में उन्होंने एक किताब लिखी जिसका नाम था “ग्रहणमाला” और इस किताब में 1100 साल के ग्रहण का उन्होंने वर्णन कर दिया जिससे कि अकबर खुश हो गया और उन्हें छोड़ दिया। जब वह अपने राज्य मिथिला में पहुँचे तो उनकी पत्नी ने कहा कि आज उनके चांद पर से ग्रहण हट गया है और उस वक्त यह घोषणा कर दी गई कि मिथिलांचल का लोकपर्व चौरचन होगा।

By: – Rajat Ranjan
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