विक्रमशिला विश्वविद्यालय
जाने क्या है विक्रमशिला विश्वविद्यालय का इतिहास?

विक्रमशिला विश्वविद्यालय भारत का एक प्रसिद्ध शिक्षा-केन्द्र था। वर्तमान समय में बिहार के भागलपुर जिले का अन्तिचक गाँव वहीं है जहाँ विक्रमशिला थी। इसकी स्थापना 8वीं शताब्दी में पाल राजा धर्मपाल ने की थी। बताया जाता है कि इस स्थापना के चार वर्ष बाद 1203 ईस्वी में इसे बख्तियार खिलजी ने ध्वस्त कर दिया था। यहां के पुस्तकालय में आग लगा दी थी जिसके बाद यह विद्यालय खंडहर में तब्दील हो गया।

विक्रमशिला विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए कठिन प्रवेश परीक्षा से गुजरना पड़ता था।
यहां 100 शिक्षकों की व्यवस्था थी जो 1000 विद्यार्थियों को पढ़ाते थे। शिक्षा की बात करें तो यहां दर्शन, तंत्र , न्याय , बौद्ध धर्म और व्याकरण की शिक्षा दी जाती थी। विदेशों से भी लोग शिक्षा के लिए यहां पहुंचते थे। वही यहां के विद्वानों ने विश्व भर में भ्रमण कर बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार किया था। देश विदेश से सैलानी अभी भी खंडहर को देखने पहुंचते हैं। खंडहरों की दीवारों पर गढ़ी शिल्पकारियों को देखेंगे तो आपको इसकी भव्यता और गौरवशाली अतीत का अनुभव होगा।

विक्रमशिला विश्वविद्यालय ने अपनी स्थापना के तुरन्त बाद ही अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व प्राप्त कर लिया था। इस विश्वविद्यालय के प्रख्यात विद्वानों की एक लम्बी सूची है। तिब्बत के साथ इस शिक्षा केन्द्र का प्रारम्भ से ही विशेष सम्बंध रहा है। विक्रमशिला यूनिवर्सिटी में विद्याध्ययन के लिए आने वाले तिब्बत के विद्वानों के लिए अलग से एक अतिथिशाला थी।

विक्रमशिला से अनेक विद्वान तिब्बत गए थे तथा वहाँ उन्होंने कई ग्रन्थों का तिब्बती भाषा में अनुवाद किया। इन विद्वानों में सबसे अधिक प्रसिद्ध दीपंकर श्रीज्ञान थे जो उपाध्याय अतीश के नाम से विख्यात हैं।
Written by Pooja Singh, Edited by -Sadhana Bhushan.