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वो आखिरी रात

सामने बस अंधेरा था और उस पर झुनकी की निगाहे टिकी थी वो दीवाल को गौर से निहार रही थी और उसके आंखों के आगे सब चल रहा था वो सोच रही थी जिस रमेश के साथ रहने के लिए उसने ऐसा किया वो साथ तो है लेकिन इस तरह साथ रहने की तमन्ना उसने तो नही की थी कल कई महीनों के बाद रमेश को देखा था बहुत ही बूढ़ा लग रहा था हाय मुझे देख कर कैसे उसकी आंखे चमकने लगी थी …।लेकिन उसको छू नही पाई महसूस नहीं कर पाई इसके लिए सारे अपने को किस हालत में छोड़ दिया जिसकी वजह से इस काल कोठरी में हूं…।
तभी बाहर से आवाज आई कैदी नंबर 2224 तुम्हारे पति की अस्पताल में मौत हो गई है जो महीने से कौमा में थे …।
झुनकी ने सोचा इतने दिन जी कैसे गया चलो कम से कम उसके क्रिया कर्म के बहाने से ही तो मुझे पैरोल मिल जाएगा थोड़ा अपने घर घूम आऊंगी लेकिन रमेश वो कैसे आएगा उसके बिना तो घर जाना भी बेकार है इधर जेल में कम से कम उसकी आहट तो है खुशबू तो है उसके होने का एहसास तो है …।और वो फिर शांत हो कर बैठ गई और अपने अतीत के पन्नो को अपनी सोच में उलटने लगी…।कैसे वो महारानी की तरह रहती थी लेकिन सब कैसे बिखड़ सा गया कैसे अपने घर से इस कालकोठरी में आ गई …।
ये वो आखरी रात थी जब वो अपने घर में थी और रमेश से मिलना नामुमकिन सा था वो रमेश के बिना रह नहीं पा रही थी कम से कम 20 साल से रमेश को उसने अपने आस पास ही रखा था उसकी शादी तक नहीं होने दिया उसको कितना बहला फुसला कर रखा था ये तो वही जानती थी….।
ये वो आखिरी रात थी जब वो अपने घर में थी …।
रात से सुबह होने को आई पर झुनकी की आंखों से नींद कोसों दूर थी कई दिन कई रात बीत गए लेकिन रमेश से मिल नही पाई थी ऐसा नहीं था की रमेश उससे बहुत दूर था बस उन दोनो के दरमियान एक दीवाल और एक बांस की टाट थी झुनकी का घर ईंट का था और रमेश का टाट यानी की बांस और घास फूस से बनी होती है । झुनकी की बहू दूसरे कमरे में उसके बेटे के साथ ही लेटी थी और झुनकी की जवान बेटी और छोटा लड़का सामने चारपाई पर थें ।और बीमार पति अलग ही चारपाई पर लेटा करवटें ले रहा था उसको लगता था अब उसके भगवान के पास जाने के दिन करीब आ गए थें।
झुनकी अपनी बेटी को हमेशा अपनी नज़रों के सामने रखती थी वो बहुत ही सुंदर थी और वो नही चाहती की उसको बेटी को जमाने की हवा लग न जाए इसलिए इसलिए उसे स्कूल तक जाने नही दिया उसको लगता था अगर जवान बेटी कहीं किसी के साथ निकल ली तो उसकी बदनामी हो जायेगी ।
वो कहते हैं न जिसके दिल में चोर हो वो सबको ऐसे ही देखता है और ये तो डकैत के घर का किस्सा है ।
उधर रमेश करवटें बदल रहा था वो पांच भाई में सबसे बड़ा था लेकिन बहुत ही मन्नतों के बाद पांच बहनों के बाद वो दुनिया में आया था हालांकि तीन बहन दुनिया को अलविदा कह गई थी बचपन में ही वो कुपोषण का शिकार हुई थी मां बाप बहुत ही गरीब थें मेहनत मजदूरी से काम नहीं चलता मां ने तो जवानी बच्चो को पालने में और उन्हें बड़ा करने में ही निकाल दिया बाप एक अस्पताल में रसोई घर सम्हालता था ।और जब छुट्टी मिलती आता बीवी के साथ थोड़ा समय गुजारता जब वापिस आता तो खत में ये संवाद आता की बीवी पेट से है ख़बर आती और रमेश के पिता की नींद उड़ जाया करती थी ओह बेकार ही गांव गया था पता नही कैसे बड़े घराने में लोग दिन रात बीवी के साथ रहते हैं और एक से दो बच्चा रहता तो वो डॉक्टर के पास ही था लेकिन शर्म के मारे कभी बोल ही नहीं पाया ।पूछ ही नही पाया । दो बेटियों को छोड़कर बांकी बेटियां दुनिया को अलविदा कह चुकी थीं बड़ा बेटा रमेश को बहुत लाड़ प्यार से पाला जितना था उसी में उसको राजा बेटा बना के रखा ताकि बुढ़ापे में सहारा बन सके रमेश से छोटे और बेटे थें । जैसे तैसे दोनो लड़कियों की शादी की ब्याज पर पैसा लेकर कभी कुछ बचाया नहीं की बुढ़ापे में ये बेटे काम आयेंगे बीबी कुछ कहती तो रमेश के पिता कहते हमारे तोबितने सारे फिक्सेस्ड डिपोजिट हैं बुढ़ापे में हम किस बात की चिंता करें । लेकिन भविष्य किसका कैसा है वो तो भगवान ही जानता है।अब रमेश के छोटे भाई के उम्र के लड़कों की भी शादी हो चुकी थी और रमेश शादी करने का नाम नही ले रहा था दोनों बहनों की शादी को भी अरसा हो गया था । बच्चे भी बड़े हो गए थे अब रमेश की उम्र उसके बालों से पता चल रहा था । लेकिन वो शादी करने को तैयार नहीं था ।घर वाले बहन भाई सब परेशान हो गए थे लेकिन वो मान ही नहीं रहा था ।
इधर झुनकी ने करवट में सुबह कर दी अब बड़े लड़के की शादी कर दी बहू भी आ गई थी बेटी भी जवान थी पति भी चारपाई पर लगभग आख़िरी सांस ही ले रहा था इतना लेकिन रमेश के बगैर झुनकी को चैन नहीं था उसका वश चलता तो इन दो दीवारों को तोड़ देती और रमेश से जा मिलती लेकिन इतनी मजबूर वो कभी नहीं हुई जितनी वो हुई थी …।उसे कपड़ो से ज्यादा मर्दों का शौक था बचपन में मां गुज़र गई थी कोई रोकने टोकने वाला था नही सो सही गलत का पता नही जब वो थोड़ी बड़ी हुई की बुआ ने अपने किसी रिश्तेदार से कहकर हमारे गांव में उसकी शादी करवा दी हालांकि मैं भी छोटी थी लेकिन इतनी भी नही की छोटी बड़ी बातें धुंधली धुंधली सी मेरी आंखों के सामने टुकड़ों में याद आ रहे हैं तभी मैं उनको जोड़कर ये वाकया आपके सामने लिख रही हूं और मेरे कहानी के सारे किरदार पढ़ना नहीं जानते अपना हिसाब किताब कर लेते हैं लेकिन अगर गलती से किसी ऐसे शक्श ने कहानी पढ़ ली जो उनको भी जानता है और मुझे भी तो आप मेरे पोस्टमार्टम रिपोर्ट को भी पढ़ने के लिए तैयार रहिएगा और मेरी आत्मा की शांति के लिए कुछ शब्द लिख देना और एक लेखक की संतुष्टि कैसे हो सकती है ।
झुनकी जब शादी के बाद आई तो उसका पति उसके आगे पीछे घूमता रहता था उसके लिए उसने छोटे छोटे सोने के बूंदे बनवाए उसकी भावी के तो कलेजे पर सांप लोट गए क्योंकि इतने साल से तो वो सारी कमाई भावी को ही देता था भावी ने उसकी कमाई से मिट्टी के गिलावे से जोड़कर घर बनवा लिया की भविष्य में ईंट का बटवारा भी हुआ तो तुड़वाने में आसान रहेगा …।उस वक्त पूरे गांव में एक से ज्यादा दो घर में हैंडपंप हुआ होगा तभी उसके पति ने उसके लिए आंगन में हैंडपंप गड़वा दिया अब भौजी को तो काटो तो खून नहीं की हम जिंदगी भर सरकारी कल से पानी पीते रहें और इनकी लुगाई आई नही की पंप आंगन में ये छोटी छोटी बातें कलेश का कारण बन गई और एक आंगन में दो दीवाल खींच गई बेचारी झुनकी की सास जो की जवानी में ही बेवा हो गई थी मैने कभी उसको ब्लाउज में नही देखा वो हमेशा साड़ी ही लपेटती थी मैं अक्सर पूछती आप इस तरह के कपड़े क्यों पहनती हो तो वो कहती कभी किसी ने पुराने कपड़े दे दिया और उसी से उसने गुज़ारा किया कभी अपने छोटे से जमीन का टुकड़ा किसी को नहीं दिया वो चाहती तो बच्चे को छोड़कर किसी और आदमी से व्याह कर सकती थी जवान थी सुंदर थी लेकिन बच्चों के लिए उसने ये कुर्बानी दी थी लेकिन नई बहू के आते ही घर के टुकड़े हो गए लगा की जमीन फट जाए और वो उसमें समा जाए लेकिन सब सीता मईया थोड़े न हैं ।
इस तरह दोनो बहू अलग हो गए झुनकी तो एकदम बेफिक्र हो गई चूंकि बड़ी बहू को ज्यादा बच्चे थें सास सोचती की वो जो मेहनत मजदूरी करती है तो इसके बच्चे का कुछ भला हो जायेगा और छोटा बेटा थोड़ा ज्यादा कमाता था बड़े बेटे से और उसका कोई खाने वाला भी नही था..।और छोटा बेटा परदेश में था झुनकी की तो वही कहावत सही हो गई अंधा क्या मांगे दो आंखे….।
फिर धीरे धीरे उसके नए पुराने सारे चाहने वालों की संख्या बढ़ती गई कभी कभी सुबह को उसके घर के आगे बड़ी बड़ी गाड़ी लगी रहती थी तो लोग पूछते किसकी है तो कहती मेरे बुआ का लड़का ट्रांसपोर्ट में काम करता है रात में अंधेरे के कारण रुक गया और इस तरह वो अपना काम निकालती थी और गांव के लोग बेचारे सीधे ठहरे उन्होंने किसी की जिंदगी में क्यों टांग डालना उसका काम चल रहा था बेचारा पति उधर फैक्ट्री में मजदूरी कर कर के इसको भेज रहा था पैसे उधर छुट्टी के बदले पैसे काट लेते थें इस चक्कर में वो बहुत कम आता और कभी कभी टेलीफोन से हालचाल पूछ लिया करता उस जमाने में मेरे ही आंगन में टेलीफोन हुआ करता था उसके पति का कम फोन आता बांकि और लागों का ज्यादा आता और मैं खुश होकर उसको बुलाने जाती मेरे घर वाले मुझे डांटते रहते लेकिन मुझे ये बात बहुत बाद में समझ आई या अभी जब लिखने बैठी हूं तब की उसके पाप का हिस्सेदार तो मैं भी थी जाने अंजाने में….।
फिर कुछ दिनों बाद उसके घर के आगे गाड़ी लगनी बंद हो गई थी मैने पूछा भी था अब नही आते आपके गाड़ी वाले रिश्तेदार क्यों नहीं आते तो कहती अब रिश्तेदार की नौकरी कहीं और लग गई है मैने गर्दन उचका ऐसे जता दिया कि मुझे कोई फर्क नहीं पड़ रहा लेकिन मेरे अंदर का पत्रकार एक्टिव मोड में था तभी तो इतनी सारी कड़ियों को जोड़कर आपके सामने ला रही हूं…।
फिर उसका दिल आंगन में जेठ के लड़के पर गया जो की उम्र में उससे काफी छोटा था कोई सोच भी नही सकता था की इनकी सोच और आदत इतनी खराब है लेकिन जीठानी तेज निकली उसने मामले का अंदाजा लगा लिया लड़का हाथ से निकल जाएगा तो उसने बेटे को बाहर कमाने के लिए भेज दिया …।
अब झुनकी ने आंगन के दूसरे युवक पर नज़र डाली और उससे हंस हंस कर बात करती रही और उसको अपने झांसे में फंसा ही लिया इधर इसके बच्चे बड़े हो रहे थे समय व्यतीत हो रहा था अब इस युवक की भी घरवालों ने शादी कर दी अब नई बीबी के सामने पुरानी चाची को कौन पूछ रहा था झुनकी को समझ में नहीं आ रहा था की ये सब उसके हाथ से निकल कैसे चले जाते हैं वो आदमी को रिजेक्ट करती थी आदमी उसको कैसे रिजेक्ट कर सकता है फिर उसने मामले को गंभीरता से लिया तो समझ में आया की शादी होने से इनका मन बदल जाता है अगर इनकी शादी ही न हो तो वो इसको छोड़कर नहीं जायेंगे … सो उसने नजर घूमा के देखा तो सामने खेत में काम करता हुआ रमेश दिख गया जो अभी ठीक नाबालिग भी नही हुआ था उसके शादी के वक्त ही उसका जन्म हुआ होगा क्योंकि वो उसके बड़े लड़के से थोड़ा ही बड़ा था …।लेकिन झुनकी इतना नही सोचती लोक लाज मान मर्यादा सबको उसने ताक पर रख छोड़ा था …।रमेश को कैसे अपना बनाए और कैसे उसको अपनी मुट्ठी में रखे यही उसके दिमाग में दिन रात चलने लगा अब वो छोटे छोटे ब्लाउज जिनके गले काफी गहरे होते थें पीछे की तरफ पीठ पर एक हल्की सी पट्टी होती और एकदम सर्दी में भी सिफोन की साड़ी लहरा के पहनने लगी जैसे उसे ठंड लगती ही न हो …।
पहले तो वो रमेश को कुछ कुछ बढ़िया खाने के लिए दे आती और उसी बहाने से हाथ को छू देती जैसे अनजाने में छू दिया हो और रमेश अंदर से सिहर जाता रमेश अभी बड़ा हो रहा था उसके हार्मोंस चेंज हो रहे थे उसके लिए ये सब नया था और गरीबी के कारण स्कूल जा नही पाया की कोई दोस्त होती उसे बहुत अच्छा लग रहा था लेकिन झुनकी तो इन सब में मास्टर हो गई थी उसने तो इस फील्ड में पीएचडी कर रखी थी और पूरा सिलेबस उसको पता था कैसे चैप्टर बाय चैप्टर काम करना है सो इनकी स्टोरी शुरू हो गई …।उधर रमेश साल भर पहले से कमाना शुरू ही किया था मां बाप को अब लग रहा था उनके बुरे दिन समाप्त होने वाले हैं लेकिन उन्हें ये नही पता था की अब मानसिक तनाव शुरू होने के दिन आ गए मुझे याद है मैं कभी भी उनके घर जाती एक झोपड़ीनुमा घर उसमे ऊपर से नीचे तक सारे भाई बहन और मां गर पापा गए तो वो भी कमरा क्या कहें की एक 3×4 की चौकी और सब नीचे में लुढ़के रहते थे और चारों बगल बांस के टाट और ऊपर फूस खिड़की के नाम पर कुछ नही बस चारो तरफ अंधेरा और उनके जीवन में जो प्रकाश लाता उनका बड़ा बेटा उसके लिए अंधेरा खुद ही इंतजार कर रहा था…।
जिसका नाम था झुनकी …पहले तो झुनकी रमेश को रात में ही बुलाती थी लेकिन उसका बड़ा बेटा अब बात को समझने लगा था तो झुनकी ने उसको काम करने बाहर भेज दिया ताकि उसके और रमेश के बीच कोई दीवार न रहे और रमेश ने धीरे धीरे काम से कमाए हुए पैसे अपनी मां को देना बंद कर दिया झुनकी की नजर तो रमेश के पैसों पर भी थी रमेश के मां बाप कुछ कहते तो रमेश मरने की धमकी देता अब बेचारे क्या ही करते उधर झुनकी ने बेटे से कहा की मेरा सपना है की मेरे बेटे की बीबी इस खपरैल घर में न आए ईंट तो हमारे पास ही है जो इस मकान में है बस छत बनाना है tu मेहनत से पैसे कमा मैं इस रमेश से फुसलाकर मजदूरी करवा लूंगी मजदूर का कितना पैसा लगता है ये फ्री में काम भी कर देगा और तू छत वाले घर का मालिक कहलाएगा …।
झुनकी के बेटे को ये बात बहुत अच्छी लगी और वो राजी किसी कमाने बाहर चला गया उधर झुनकी ने अपने पति से भी कहलवा दिया की आप चिंता मत करो छुट्टी मत लो पैसे काट लेते हैं थोड़ी और मेहनत करो और इधर मैं इस घर को तुड़वा कर nya मकान बनवा दूंगी सो रमेश भी साथ देने को तैयार है ….।
अब झुनकी ने अपना सारा रास्ता साफ कर लिया अब जैसे ही उसने रमेश के साथ मिलकर घर तुड़वाना शुरू किया की जिठानी तनकर सामने खड़ी हो गई की आधा ईंट तो मुझे भी चाहिए क्योंकि ये घर शादी से पहले का है और मैने इसमें बहुत मेहनत भी की थी और नियम भी यही कहता है….।
अब झुनकी तो झुनकी ठहरी उसने ईंट देने से मना कर दिया और इस बात पर दोनो जीठानी देवरानी में लड़ाई शुरू हुई और बड़ी जीठानी उसे ताने मारने लगी की तू तो इस तरह के काम करती है छोटे बच्चे को भी नही छोड़ती तेरे बेटे के उम्र का है ये लड़का कैसी आग लगी है तेरे अंदर छोड़ दे उसको तब रमेश के घर वाले भी आ गए लेकिन झुनकी ने रमेश को इतना अपने वश में कर लिया था की रमेश उसको छोड़कर नहीं जा सकता था रमेश के मां बाप तो मजबूर थे क्योंकि अब वो सीधे जान देने की बात करने लगा था.।
अब तो इस झगड़े ने गांव वालों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया की ये तो अलग ही तरह की दैत्य महिला है और इससे अपने बच्चों को बचा के रखना पड़ेगा लेकिन बूढ़ी तो हो चुकी थी और एक शिकार फांस रखा था उसको वो ढील दे देती तो शायद उसके चंगुल में अब कोई नही आता .…।अभी सारे समाज के आगे पोल तो खुल गई थी लेकिन किसी की हिम्मत नही थी उसको कुछ कहे और ऊपर से बाबा ओम की बहुत बड़ी भक्तिन थी और चूंकि उसको थोड़ा बहुत मंत्र भी आता था तो गांव वाले ये सोचते की अगर इससे मुंह लगाया तो ये कुछ कर न दे तंत्र मंत्र गांव के सीधे लोगों का ये भी बहुत बड़ा पंगा होता है उनके अंदर डर बहुत होता है वो भगवान से भूत से बहुत ही ज्यादा डर लगता की कहीं नाराज न हो जाएं…तो अब पूरे गांव को पता चल चुका था की झुनकी अपने से आधे उम्र के लड़के के साथ रहती है वो उससे दूसरों के यहां मजदूरी करवाती और पैसे भी रख लेती और शाम को अपने घर बनवाने में काम करवाती चूंकि उसके मां बाप भाई सब देखते उसे खाने के बहाने बुलाते लेकिन वो जाता ही नही कितनी भी कोशिश कर ली घर वालों ने वो वहीं दिन भर उसके चोकठ पर बैठा रहता था…।जाने क्या जादू टोना हो गया था उसे पहले तो बहुत मजा आया था लेकिन अब लग रहा था की वो किसी खुबसूरत जादूगरनी के हाथ का कठपुतली हो गया हो अब धीरे धीरे शरीर से ताक़त भी चली जा रही थी लेकिन शरीर में ताकत नहीं रहने पर भी उसको वो काम करने के लिए मना लेती इतना सब होने के बाद रात में मैडम को अलग से पर्सनॉल सर्विस चाहिए था..।
अब रमेश खुल कर सांस लेना चाहता था भाग जाना चाहता था उसे मां की याद आती अपनी बकड़िया याद आती भाई याद आते जिनके साथ एक ही बिस्तर पर सब कसमस करके सोते थे …।
उधर झुनकी जानती थी उसकी जवानी जा चुकी है शेरनी अब बूढ़ी हो चुकी थी अब उसके पास कोई नही आने वाला इसलिए इसको अपने पास ही रखना होगा और समाज में सब जान तो रहे थे लेकिन उसके शान में कोई कमी नही हुई थी…।
उधर रमेश के सारे भाई बड़े हो रहे थे और वो भाई को समझा नही पा रहे थे की शादी कर ले तुमसे पहले हम कर लेंगे तो लोग क्या कहेंगे और कुछ मदद नहीं करेगा तो घर कैसे बनेगा सरकार इंदिरा आवास तभी देगी जब तुम्हारी शादी ब्याह होगा लेकिन रमेश को ये सब कहा सूझता था उसे तो बस झुनकी ही दिखती थी न उसके गालों में आ रही झुर्रियां नजर आ रही थी न बूढ़ा होता चाचा अब तो झुनकी ने इस साल बड़े लड़के की शादी भी कर दी की उसके उम्र के शादी हो रही थी और रमेश की मां यह सब देख कर कुढ़ रही थी की मेरे लड़के का घर तो नही बसने दे रही लेकिन अपना सब कर रही है फिर बेटी भी व्याह देगी अब बहू के आने से झुनकी ने रमेश को घर में रहने तो दिया लेकिन बहू से कहती इसका कोई नही मां बाप तो हैं पर घर से निकाल दिया है इसलिए इसको इधर रखा है दो रोटी खायेगा और बदले में घर की रखवाली करता रहेगा बहू कम उम्र की थी उसने सिर हिला दिया लेकिन बात उसको हज़म नहीं हुई ।फिर उसने कई बार इस तरह की हरकतें देखी जो की नाकाबिले बर्दाश्त थी ….।फिर उसने अपने पति से हिचकिचाते हुए इस बात की चर्चा की वो लड़का तो बचपन से उसको अपने घर में देखता आ रहा था सो उसके लिए नई बात नही थी पर वो मां से कैसे बात करे तो उसने एक उपाय निकाला अब वो बेमतलब उसको ताना दे देता गाली गलौच कर लेता ताकि वो चला जाए लेकिन रमेश क्या करता उसने तो ज़वानी और पैसे सब इसमें लगा दिया अब शरीर इतना कमजोर हो गया था की उम्र से 10 साल बड़ा ही लग रहा था न कभी उसने ब्याह करना चाहा घर वालों ने कहते कहते कोशिश ही करनी छोड़ दी इसके चक्कर में छोटे भईयों की भी उम्र निकल गई जैसे तैसे मां ने कह सुन कर बाकी का घर बसाया ….।
झुनकी की लड़की बड़ी हो रही थी सुंदर तो वो थी लेकिन कोई इस घर में रिश्ता नही करना चाह रहा था इस बात को झुनकी का बड़ा बेटा बखूबी समझ रहा था …।और उसने एक दिन मौका देख कर जब रमेश झुनकी की बहू से पानी मांग रहा था और पानी का ग्लास देते वक्त रमेश की हाथ उसके बहू के हाथ से टकड़ा गया क्योंकि वो कमजोरी के मारे ठीक से देख नही पा रहा था और हाथ टकरा तो गया लेकिन गलती से अब झुनकी के बेटे ने इसका फायदा उठा कर की मेरी बीबी को छेड़ रहा है बस उसने तिल का ताड़ बनाया और उसको घर से निकाल देने की जिस करने लगा फिर क्या था उसने इसी बहाने से अन्न जल त्याग दिया की अब जब तक ये नही घर से जायेगा तब तक मैं पानी का एक बूंद भी नही लूंगा फिर अब झुनकी क्या करे बड़े बेटे में तो उसकी जान बसती थी उसने सोचा एकाध दिन में मामला शांत हो जायेगा लेकिन घर में सब मौन होकर झुनकी के बड़े बेटे का ही समर्थन कर रहे थे अब झुनकी का पति भी फैक्ट्री में कार्य करने में असमर्थ था सो फैक्ट्री वालों ने उसे घर बैठें रहने की सलाह दी ….।
अब रमेश बेबस था की जवानी तो निकल गई दो पैसे भी नही किस मुंह से मां बाप के सामने जाए जब भाईयों ने घर बनने के समय मदद मांगी तभी भी वो नही गया धन से नही तो शरीर से कर ही सकता था …उसका मन था लेकिन झुनकी ने बेबस कर रखा था सो अब वो क्या करे लेकिन मां बाप ने उसे अपने घर में आने दिया खाने के लिए अन्न दिया रहने के लिए जगह दिया सब मिल गया लेकिन मन को संतुष्टि नही मिल रही थी जिस झुनकी के लिए जग छोड़ा अब वो छूट रही थी या छूट गई थी कुछ समझ में ही नही आ रहा था अब वो इधर करवटें बदल रहा था और झुनकी उधर ….।
झुनकी के पति ने जवानी इस औरत के चक्कर में फैक्ट्री में लगा दिया की इसकी लाली लिपस्टिक की कमी न हो और ये हमेशा सुंदर दिखे दूध दही खाए उसे याद नहीं की कभी उसने पूरी और पराठा खाया होगा ….।कभी एक बनियान नही खरीदी हमेशा फटे जूते और कपड़े पहने ताकि ये नई साड़ी पहने और आज जब वो अभी भी जवान और सुंदर लग रही थी और उसने उसके पूरे उम्र उसके इंतजार में ये सोच कर गुजार दी की वो कहेगी की अब बच्चे बड़े हो गए अब घर आ जाओ बहू बनाएगी हम छत पर बैठ कर खायेंगे चाय पियेंगे बस इतना सा ही सपना था लेकिन उसने कभी नहीं कहा वापिस आ जाओ अब कमाने की जरूरत नहीं चलो कोई न अब तो बढ़िया व्यवहार कर लेती ….।
बदले में उसने एक टूटी चारपाई और पुराना चादर दे दिया और कह दिया तुम दिन भर खांसी करते हो मेरी नींद टूट जाती है इसलिए यहीं परे रहो…झुनकी के पति की आंखों के आगे अंधेरा छा गया ….अब वो खुद ही चाहने लगा की मौत आए और उसे अपनी बांहों में समेट ले और वो सुकून से सो जाए ये इच्छा उसकी पत्नी कभी नही पूरी कर पाएगी और सर्द आंहे भरने लगा….।
झुनकी के लिए बहुत मुश्किल हो रहा था रात काटना ये पलंग उसने बहुत शौक से लुहार को घर पर रख के तब बनवाया था और वो अब रमेश के अलावा किसी और नही आने देना चाहती थी उसका वश चलता तो और भी लोग पलंग शेयर कर सकते थे लेकिन हालात अब उसके वश में नही थें सो अब रमेश ही उसका आख़िरी प्यार हो गया था …..।
आज उसने निश्चय किया की ये रात आख़िरी थी रमेश के बिना अब वो उसके बगैर नहीं रहेगी सो वो उठी अब उसने एक एक करके सबको जाकर निहारना शुरू किया शायद ये आख़िरी बार था की वो सबको इतने सुकून से देख रही थी उसने सबसे पहले छोटे बेटे को देखा जो कल ही उसके लिए नई साड़ी लाया था उसने अपनी कमाई से पहली बार कुछ खरीदा था उसने बेटे की बालाएं ली फिर वो बेटी के पास गई उसके लिए उसने जाने कितने साड़ी कपड़े और दो जोड़े चांदी के पायल और एक सोने की छोटी सी नथ बनवा के एक ट्रंक रखा था की शादी के बाद वो इस तरह से विदाई करेगी की पूरा गांव देखता रह जायेगा बेटी ने पायल को हाथ भी नही लगाया था उसने कहा था की ये गंदे हो जायेंगे शादी के बाद ही पहनूंगी सो उसने एक जोड़ा उसको नींद में ही पहना दिया अब वो गई बहू के पास जो की पेट से थी और जाने कितने जोड़े कपड़े उसने हाथ से सिल कर बना लिया था स्वेटर छोटे छोटे मौजे सब एक से बढ़कर एक थे ….।
फिर वो बड़े बेटे और पति के पास गई और सबको नजर भर देख लिया और फिर एकबार उसने चाय बनाई और उसमें उसने एक पुड़िया डाल दिया वो पुड़िया जो उसके पूरी दुनिया को बदल देने वाला था ….।
और उसने सबको थोड़ा शक्कर ज्यादा मिला कर उसमें डाल दिया और सबको दे आई…।
अब थोड़ी देर में पूरा घर शांत हो गया और वो नहा कर बेटे की पहली कमाई का साड़ी जो वो लेकर आया था उसको पहन कर बेटे को दिखाया लेकिन वो तो सुन्न हो चुका था वो बेटे की बलाएं लेकर मंदिर गई और रमेश को घर आने का भी इशारा कर दिया अब झुनकी के बड़े बेटे का दोस्त उससे मिलने किसी जरूरी काम से आया तो उसने देखा सब बेहोश पड़े थें अब उसने जल्दी से एंबुलेंस बुलाया और सबको हॉस्पिटल ले गया डॉक्टर ने पुलिस कैसे बताया अब झुनकी के बड़े बेटे का दोस्त और उसका साला भी था अब उसने जल्दी पुलिस आई और चेकअप शुरू किया वो कितना खुश था की वो मामा बनने वाला था अब इस पागल औरत ने पूरा खानदान ही तबाह कर दिया अब उसने जल्दी से लिखित शिकायत दर्ज करवाई पुलिस गई और महिला पुलिस ने जैसे ही दो थप्पड़ मारा झुनकी ने सब बताया कैसे रमेश ने ज़हर लाने में उसकी मदद की और वो मना कर रहा था ये सही नही पर वो सुन नही रही थी….और उसने जबसे प्यार किया था तबसे बस उसकी हर जायज़ नाजायज मांग को बिना किसी शर्त के मानी थी लेकिन ये जान बूझकर इन लोगों ने अपने नाजायज रिश्ते के लिए पांच जान और एक नन्हा सा जान जिसने दुनिया में कदम भी नही रखा था प्यार का नाम तो कुर्बानी देना होता है इन्होंने तो कुर्बानी ले ली ….।
अब दोनों एक साथ तो हैं लेकिन दीवाल का फर्क है अभी भी शायद पूरी उम्र के लिए …..।

Written By Sadhana Bhushan

sadhanasource.com

My name is Sadhana Bhushan. I love to write which I feel from my heart. Its journey has been started since my childhood. In My college day lots of articles and story has been published in local newspaper. I know Maithili, Hindi, Magahi and English. May be my English could be not strong because I have started English after my marriage while I had to do post-graduation in journalism. So, I have two degrees in post-graduation first in economics (Magadh university Patna) 2nd in journalism (Sikkim Manipal University). diploma in journalism from Magadh university Patna after film direction and production course from AAFFT. Then Join Sadhana News as an Intern coincidently. Where I have learned so many things. family and career were not going smoothly so I Have decided to write from home and my happiness not for earning It comes from writing. in lockdown period I have written 300 more than articles, story and so many things Whatever nobody was judging me because it was free, and I have learned so many things proper way to writing then journey has been started. Matram India where my First story has been published. and Pratilipi and more than two portals 9news but I was not satisfied then I have started my own website sadhana sources. Now a days three people are working with me. ( हालत कभी आसन नहीं थें . राह बहुत मुश्किल थी . अर्थशास्त्र में मास्टर हिंदी भाषा में करने के बाद इंग्लिश सीखी ताकि जर्नलिज्म की किताबें पढ़ सकूं . 2008 में डिप्लोमा किया था लेकिन घरवालों ने काम नहीं करने दिया की लड़कियों के लिए ये ठीक नहीं . मैंने बहुत से मेडल्स कॉलेज में जीता था पर सबको लगता था की अगर हाथ पैर टूट गया तो कौन शादी करेगा और मुझे बहार खेलने के लिए नहीं जाने देते थें . मैंने बात मान ली लेकिन सपने को छोड़ा नहीं . फिर उनकी बात मानकर शादी कर ली ताकि राजधानी में मेरा कुछ भला हो सके .फिर मैंने फिल्म प्रोडक्शन और जर्नलिज्म में मास्टर किया .कंप्यूटर में डिप्लोमा किया घर के साथ कुछ न कुछ करती रही . प्रोडक्शन के बाद मुझे बाहर जाने का अवसर मिला था लेकिन वही बात महिला को बाहर जाने का कोई प्रोयजन नहीं मैं चुप रही पर मेरे सपने मुझे सोने ही नहीं देते थे फिर मैंने जैसे तैसे साधना न्यूज़ में इंटर्नशिप किया लेकिन घर से 30 किलोमीटर जाना और 30 किलोमीटर आना आसान नहीं था क्यूंकि अब घर में मेरा बेटा भी था जिसको मेरी ज्यादा जरुरत थी . लेकिन सपने मेरी उम्र के साथ बढ़ रह थें . फिर मैंने ऑनलाइन लिखना शुरू किया और ये सफ़र अभी भी जारी है और उम्र के आखिरी पड़ाव तक चले इतनी सी तमन्ना है . मैं अक्सर ये सोचती थी की क्या करुँगी इतना सब सर्टिफिकेटस का सब बेकार हैं .लेकिन अब जब लिखना शुरू किया तो सब की जरुरत होती है तो अच्छा लगता है. बस मैं इतना कहना चाहती हूँ की अगर आपने सपने देखें हैं तो उसको पूरी करने की जिम्मेदारी भी आपकी ही है और जब आप सोने जाएँ तो सपना आपको सोने न दे . और उस सपने को पूरा करने के लिए अपने व्यस्त दिनचर्या से थोड़ा समय जरुर निकालें वरना आप जिन रिश्तों में उलझे हैं वही सबसे पहले ताने मारते है और वो ताना चुभता बहुत है ; क्यूंकि ये सब मेरे साथ हो चूका है . साधना भूषण

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