श्राद्धकबाद मैथिली कथा

छोटन कका केँ तीनटा बेटा आ दूटा बेटी छलनि। अपने बम्बई के कोनो सेठ ल’ग काज करैत छलाह। बेटी सभके त’ चिठ्ठी पतरी जोगर पढ़ा, वियाह क’ देलथिन। मुदा बेटा सभके पढ़ेवामे कोनो कसरि नहि छोड़लाह।

बड़का सुरेंद्र भैया डिल्लीमे एकॉउंटेंसी के काज करैत छथि। चिक्कन पाई कमाइ छथि, मुदा परिवार ल’क’ ओतहि बसि गेलाह। गाम घर सँ कोनो खास लगाव नहि।

मझिला महेंद्र भैया सुरतमे कोनो कपड़ा मिलमे छथि। किछु दिन भाड़ा के मकानमे रहला। आब सुनैत छी अपन घर ल’ लेला है।
छोटका धीरेंद्र हमर सभक संगी। छोटन कका आ दुनु भाँइ के सेहो मोन रहैक जे इ खूब पढ़य, मुदा इ लफुआगिरीमे गामे पर रहि गेलनि। पढ़’मे मोन नहि लगलै। आब ओकरो धिया पूता भेलकि त’ घरे पर एकटा जेनरल स्टोर के दोकान खोइल लेलक।

चारु दिस सँ निश्चिंत भ’ कक्का नियारिते छलाह जे आब गाम ध’ लेब, की एकाएक काकी के ब्रेन हैमरेज भ’ गेलनि। वो स्वर्गवास भ’ गेलीह। अपने एलाह तहन, काकी के अंतिम संस्कार भेलनि

छोटके आगि देलकनि। मझिला सरझप्पीक परात आ बड़का नह केस दिन एलनि। बैसारमे समाज कहलकनि सउजनी ल’क’ निमहि जाउ, मुदा बड़का बेटा फोने पर कहलकनि तहन वो टोल किया छोड़ब ? सौंसे गाम होब’। वृखोत्सर्ग श्राद्ध आ गाम ल’क’ दुनु दिन थैहर थैहर भोज भेलनि। जय जयकार भ’ गेलनि। लोक खूब ज’स देलकनि।

माछ माउस के रातिये सँ कनमन कनमन होब लगलै तीनू दियादनी मे। परात भेने अमीन आओल। छ कठ्ठा घरारी अंकुड़ लगा क तीनू केँ अपन अपन हिस्सा भेटलैक। पुरना तीनू हन्ना घरक इंटा के दाम छोटका, दुनु भाँइ के देतकि से तयन भेलैक। दश कठ्ठा के गाछी साझीये रहलै। आ दु कोला खेत रहैक एगो छह कठ्ठाबा आ एकटा चरि कठ्ठबा। तकर बंटवारा होब सँ पहिने भोजक हिसाब होब लगलै। सवा तीन लाख रुपया खर्च भेल रहैक जाहिमे 25 हजार कका लग रहनि इम्हर तीनूं भाँइ केँ एक एक लाख क’ हिस्सा पड़लै। छोटका हाथ ठाड़ क’ लेलकै, मझिला गबदी माड़ि लेलक। तहन बड़का प्रस्ताव देलकै जे सड़कक कात वला चरिकठ्ठवा के हम चारि लाखमे मुखिया जीक बेटा सँ बात केने छी। ओकरे हटा ले।

एक लाख रुपया बाबू के नाम पर फिक्स क’ देबनि। मझिला हामी भरि देलकै छोटका के कोन पाई रहैक चुप्पे रहि गेल । बात फाइनल भ’ गेलैक। पंचसभ चाह पीबि विदा भेलाह।
दलान पर आबि मझिला के बेटा घिनाब’ लगलै “डैड क्यारे चलसो ? अहियां पार्क पन नथी, कोई जिम नथी, मन नथी लागे छे। (डैड कब चलोगे? यहाँ पार्क भी नहीं है, न जिम है, मेरा यहाँ जी नहीं लग रहा।’) इम्हर अंगना अबिते बड़का के बेटी जे दशवीं मे पढ़कि, बाजल “डैडी तुम कैसे यहाँ रहते हो ? मेरा तो दम घुट रहा है। कब जाएंगे हमलोग??” हां बेटा चलेंगे, परसों का फ्लाइट है दरभंगा से। सुरेंद्र भैया मोने मोने सोचति छलाह जे अहि बेर त’ निमहि गेलहुँ, आब बाबू बेरमे भगवान अहिना पार लगाबथि।
अनिल झा
खड़का-बसंत
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नोट :- कथा काल्पनिक आ फोटो गूगल सँ लेल गेल अछि।