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Jejuri: Devotees throw turmeric powder as an offering to the shepherd god Khandoba on the eve of ‘Somavati Amavasya’ at Jejuri temple in Pune on Monday .PTI Photo (PTI10_12_2015_000180B)

बात उन दिनों की है, जब मैं कॉलेज में थी उन दिनों में दिमाग सातवें आसमान पर होता है। तन कहीं मन कहीं और अपने आगे तो लोग किसी की सुनते ही नही। बात मैं अपने टीएनज की कर रहीं हूं। पर होता ऐसा सबके साथ ही है लेकिन जिन्होंने मन को सही दिशा दे दी वो तो क्या से क्या बन जाते हैं वरना तो सब जानते हैं लड़की हो तो बच्चे और चूल्हा चौकी सम्हालों और लड़का हो तो 9 टू 5 जॉब करो ..।

हाँ तो मेरे कॉलेज के दिनों की बात हो रही थी तो सोचा थोड़ा ज्ञान की बात भी बता दूं। मेरी दोस्त सीमा शुद्ध ब्राह्मण इतनी कि पूछो मत। एक बार मैं उसके गांव गई थी। प्याज की खेती इतनी अच्छी होती है कि बेचने के बाद भी एक कमरा प्याज स्टोर करके रखा था।

मैं जब गई थी, उस टाइम प्याज का दाम करीब 80 रुपया था। क्यों मैं बता नहीं पाऊंगी ? मुझे याद नहीं…। मैने एक कमरे में पूरा प्याज भरा था। मैं जिस घर से गई थी। एक एक प्याज डाल रहे थें। मेरे मुंह से पानी आ गया और लहसुन भी एक कमरे में स्टोर था लेकिन वो लोग खाते नही थे तो उनके लिए कोई बात थी ही नहीं और सैम की फली भी लगी थी। मैंने आंटी से पूछा क्या मैं ये तोड़ के सब्जी बना लूं? उन्होंने कहा तुम्हें आती है। मैने कहा हां। फिर मैंने प्याज काटा, लहसुन छिला, सरसो पीसा सिलबट्टे पर मिक्सी नही थी। गांव में लाईट भी नही थी। तभी फिर मैंने सब्जी बनाई। उन लोगो ने तो टेस्ट भी नही किया। बस सीमा ने मेरा दिल रखने के लिए थोड़ा टेस्ट किया और उसे नहाना पडा, लहसुन खाने की पनिशमेंट में।

कोई न दोस्ती में इतना तो चलता ही है …। खैर मेरे ऊपर गंगाजल छिड़क दिया गया ..। फिर सुबह जब मैं उठी तब क्या देखती हूं? आंटी अपने मिट्टी के चूल्हे को तोड़ रही हैं …। हे भगवान आंटी आप ऐसा क्यों कर रहे हो? कितना सुंदर चूल्हा है ? कितनी मेहनत लगती है ? आप क्यों तोड़ रहे हो ? खाना किस पर बनेगा ? उन्होंने कहा इस चूल्हे पर मैं छठ पूजा का प्रसाद बनाती हूं और तुमने कल लहसुन वाला खाना बना दिया, मेरा चूल्हा और उसकी मिट्टी अपवित्र हो गयी। मैं नई मिट्टी लाई हूं। तालाब किनारे से अब नया चूल्हा बनेगा और वो तोड़ने लगी। मुझे तो लगा जैसे मैंने किसी का मर्डर कर दिया। ऐसी फीलिंग आई। मैंने दुखपूर्वक कहा, “आंटी आप कल बता देती। लहसुन खाना इतना बड़ा गुनाह हो जाएगा तो मैं कभी न खाती।” और सॉरी बोला लेकिन मेरी गलती तो बहुत बड़ी थी …। उन्होंने कहा, “तुम मेहमान हो। क्या बोलते। तुमने देखा न इन सबको हमने घर से बाहर इसलिए रखा है ताकि हमारा घर अवपित्र न हो …।” मैने कहा फिर आप उगाते क्यों हो ? उन्होंने कहा ये नगदी फसल हैं। इससे अच्छे पैसे आते हैं। मुनाफे वाली फसल है इसलिए …।

मैने सोचा वाह उससे बेचने से जो पैसे आयेंगे वो पवित्र और फसल जिसको साल भर सेवा करो पानी दो बुआई करो खाद डालो वो अपवित्र। खैर मैं तीन चार दिन रही। बहुत सेवा सत्कार हुआ मेरा। एक ओर मजेदार वाकया हुआ मेरे साथ। मजेदार या सजा वो आप बताना ..।

चूंकि हम बिहारी है। हर सुख दुख पर हम नॉनवेज खाते ही हैं। दो दिन बाद न्यू ईयर आने वाला था। हम बौद्ध गया घूमने जाने वाले थे तो मैने सोचा कि शाम को चिकन खाऊंगी। मैं हर साल खाती हूं। खाने वाले कई लोग थें, मेरी कजन सिस्टर और सीमा की सगी बहन डेजी जो नानी के घर से खाना सीख चुकी थी पर किसी को बताया नही था। नही तो काला पानी की सजा हो जाती और भाई और उसके जीजा जी भी खाते थे लेकिन घर में सीमा के आलावा कोई नहीं जानता था इनका कच्चा चिट्ठा …।

मैंने फरमाइश की तो रवि (सीमा का भाई) ले आया। अब बर्तन कामवाली के घर से आया। चूल्हा नहीं था तो ईंट जोड़ के चूल्हा बना, फिर सुखी लकड़ी आई नीचे दुकान से। बड़े कटोरे में भर कर सरसों का तेल आया। प्याज तो था ही लहसुन और अदरक रवि एक खेत से उखाड़ ले आया और हरी मिर्च भी तोड़ लिया। अब चिकन पका। सब कुछ ऑर्गेनिक। क्या स्वाद था? लिखते वक्त कुछ बूंदे मेरे शब्दों को भी गीला कर गई …।

अब खाने का टाइम हुआ तो मुझे केला का पता सर्व किया गया। मैंने कहा तुम लोग भी बैठो भाई मेरे साथ। उस वक्त जो धोखा हुआ आज तलक नही भूली। कोई भी मेरा साथ देने के लिए तैयार नहीं हुआ। सबने एक स्वर में कहा हम नहीं खाते हैं फिर परमाणु बम मेरे ऊपर लगा किसी ने फोड़ दिया हो ..। मेरी बहन ने भी नही खाया। उसने टीम बदल ली। अचानक से उस दिन से तो खून के रिश्ते से भरोसा उठ गया था…। मैने बनाया था तो खाना था ही। मैं कैसे बताऊं मैं नीचे जमीन पर बैठ के खा रही थी और कितने लोग मुझे देख रहे थे। आप यकीन नही करेंगे सीमा, डेजी, उसका हबी, मेरी बहन और रवि और उसके पापा और जिसका बर्तन था वो और मैं खा रही थी। सीमा सोच रही थी इतना खर्चा हुआ है। मेहनत हुई तो सारा खा ले और थोड़ा जिसका बर्तन है उसके लिए छोड़ दिया जाय लेकिन कितना खा लेती। पेट से ज्यादा तो खा लिया था और सबकी नज़र भी लगी भरपूर और वो बर्तन वाली इसलिए खड़ी थी कि उसके घर में एक ही कढ़ाई थी और उनको सब्जी बनानी थी, सो जल्दी के चक्कर में उस चिकन को निगल ही रही थीं…।

कोई दूसरा इंसान होता तो खाता नही, लेकिन मैंने धोखा तो खा लिया था फिर चिकन भी खा लिया। सर्दियों की रात और ओस में बैठकर बनाया था। किसी ने ये नही बताया था कि चिकन खाने के बाद नहाना भी पड़ेगा। वैसे मुझे खुद सोचना चाहिए था कि इनके घर मे लहसन नही जाता तो मैं पेट में चिकन लेकर कैसे जा सकती थीं। सीमा ने कहा नहा लो। मैंने मना किया तो कहा, “हाथ पैर धो लो।” मुझे धोखे से ले जाकर सर्दी में स्नान करवा दिया। मुझे लगा कि मैं मसौढ़ी से पटना पैदल चली जाऊं लेकिन जा नही पाई। बहुत रोई। तुमने पहले क्यों नहीं बताया कि अगर चिकन खाओगी तो रात में 10 बजे नहाना होगा। फ़िर अगले दिन बुखार, पेट ख़राब और दिमाग का तो पूछिए ही मत…।

हालांकि सीमा का इस स्टोरी से बस इतना लेना देना है कि वो मुझे साईं बाबा के दर्शन करवाने ले जाती थी। उधर गुरुवार को खीर का भंडारा होता था और हम कॉलेज से निकल कर चुपके से जाते थें। बहुत टेस्टी होता था। कभी कभी पूरी सब्जी भी होती थी। एक दिन एक महिला जोकि बहुत बड़े खानदान की लग रहा थी। उसने एक लंचबॉक्स में प्रसाद बोलकर उसमे भी पूरी सब्जी लिया। मुझे बहुत बहुत जिज्ञासा हुई क्योंकि हमारे गांव में तो गरीब लोग ही खाना खाते वक्त अपने घर के लिए भी पैक करवा लेते हैं। शायद मैं तभी आस्था को उतने करीब से नही समझ पा रही थी और युवा काल में लोग बहुत सी बातें समझते ही नही या समझना ही नही चाहते। कोई समझाना भी चाहें तो वो ही नादान लगता हैं। युवा को लगता है कि वही सबसे बड़ा ज्ञान को समझने वाला है लेकिन जो समझा रहा है वो इस काल से गुजर चुका होता है …और जिसने समझ लिया तो ये बहुत बेहतरीन है उसके भविष्य के लिए …।

हम तो सांई बाबा का प्रसाद स्वाद के लिए खाते थें जोकि अनुपम होता था। घर ले नही जा सकते थे क्योंकि झूठ बोलकर मंदिर जाते थें और प्रसाद ले जाते तो सुनने को मिलता सो अलग….। लेकिन रोड पर खड़े होकर लाइन लगा कर खाना मुझे अच्छा नहीं लगता। सोचती ये सिर्फ गरीब इंसान ही खा सकते हैं। अपना टाइम स्पेंड करो और दो पूरी और सब्जी …। वैसे तभी पटना जैसे शहर में भंडारा उतना होता नही था। बस लंगर सुना था जो हमारी घर से दूर पटना साहिब हैं वहां लगता था…।

फिर शादी के बाद दिल्ली आए। इधर भाई साहब किसी का जन्मदिन तो भंडारा एकाद्सी तो जागरण तो घर लिया तो हर छोटे बड़े अवसरों पर भंडारा करते ही है और नवरात्र में नौ दिन बस चले तो नौ दिन करलें..। अब मेरे पति को भंडारे की पूरी बहुत पसंद है और उसकी आलू की सब्जी चाहे कितना भी ट्राई करले वो स्वाद नहीं आता है। लगता है भंडारे के खाने में माताजी खुद ही आकर सब्जी में तड़का लगा जाती है….।

एक दिन मेरे घर के नीचे मंदिर में भंडारा था। मैं ऊपर आ रही थी तो पंडित जी ने कहा, “ऊपर ले जाओ। प्रसाद है। तुम्हारी सासू मां को दे देना।” मैंने अनमने ढंग से लिया। अभी तक मैं यही सोचती थी कि भंडारा गरीब लोगों के लिए होता है। जिनके पास पैसे नहीं होते वही खातें है। ऐसा मुझे लगता था। किसी को मैने ये बात बताई नही थी क्योंकि मेरा कांसेप्ट क्लियर नही हुआ था ….।

पंडित जी ने जब कढ़ी चावल दिया और मेरी सास ने कहा, “तुम भी खा लो। प्रसाद है। मैने तब तक दिल्ली में तीन साल गुजार दिए थे। पर मैं खाती नहीं थी। सासू मां की बात रखने के लिए खा तो लिया। फिर वो स्वाद मेरे मुंह में जो घुला सो अब तलक है। फिर मैं नीचे गई बड़ा कटोरा लेकर। पंडित जी के पास गई और बोला, “इसको भर दीजिए।” उन्होंने आश्चर्य से देखा क्योंकि कुछ देर पहले मैं थोड़ा सा ही लेकर गई थी वो भी जबरदस्ती और आप यकीन मानिए मैं दो बार गई….ये थी मेरी बुद्धि परिवर्तन की कहानी …। उसके बाद अब मैं मंदिर में पूजा करने रेगुलर जाऊं न जाऊं लेकिन भंडारे का खाना लेने तो जाऊंगी ही…।

कल मैं डॉक्टर के पास से आई थी। तबियत थोड़ी खराब चल रही है। इतनी कि काम मुश्किल से कर पा रही हूं। लिख इसलिये रही हूं कि भंडारा कल हुआ था मेरी सोसाइटी में और अब पति देव जाना चाहते नही है और वो अब दूसरे शहर में भी हैं। भाई ने साफ साफ बोल दिया कि मैं गया तो बस अपने लिए लाऊंगा। तुम देख लो। अब क्या किया जाए और ऊपर से मंगलवार का व्रत। सो मैंने डिसाइड किया खुद जाने का। चला नही जा रहा था फिर भी गई। मंदिर में सब महिलाओं को बिठा के प्यार से खिला रहे थे। फिर मैं बैठी। बेटे को खिलाया। अपना लंच बॉक्स निकाला और कहा इसमें मेरा रख दो। मैं रात में खाऊंगी और तभी मुझे साईं मंदिर वाली महिला की याद आ गई। तब मैने उसको आश्चर्य से देखा था और आज खुद के लिए पैक करवा रही थी। वक्त बदल गया था। नज़रिया भी बदल गया था ….।

उन्होंने कढ़ी ज्यादा डाल दिया पकौड़े बोलें कम है। मैने कहा अंदर से लेकर आओ मैं इसके लिए ही आई हूं और लोग तो चुपचाप खाने लगे थे पर मेरी वजह से फिर पकौड़े आएं। सबको मिले। सबने खुश होकर खाया। मैने भी रात के लिए तीन पकोड़े रखे। अब मैंने मन में विचार किया, दोनो भाई बहन और एक बेटा थोड़ी सी कोई हरी सब्जी बना लूंगी। खाना बनाने का झंझट ही खत्म लेकिन किस्मत बगल में एक बच्ची रहती है। वो खाकर आई थी फिर भी आंटी कढ़ी है तो मैने पूछ लिया चाहिए वो भी बिहारी हां आंटी। मैने ऐसे ही पूछा पकौड़े उसने क्यों मना करना था नेकी और पूछ पूछ। हां आंटी चलो वो तो चली गईं लेकिन भाई तो नाराज़ हो गया कि तुमने शेयर किया मैने तो नही। अब तुम एक खाओ और मैं दो। बाद मे डेढ़ डेढ़ डिवाइड हुआ। फिर खाना खाया…।

मुद्दे की बात ये नही कि मैं कढ़ी चावल बनाती नही। बहुत टेस्टी बनाती हूं। यकीन न आए तो कभी आना। बना कर ज़रूर खिलाऊंगी। खुसबू तो सीधे लाल किले तक चली जाए। इस तरह की तारीफे लोग करते हैं लेकिन भंडारे वाली बात नही ….।

कुल मिला कर मैं ये कहना चाहती हूं कि भंडारा गरीब लोगों के लिए ही नही है। ये एक आस्था है। इसमें देवता का दिया हुआ स्वाद है। मैने इतना इसलिए लिखा कि किसी के मन में मेरी तरह ये भावना हो कि ये गरीब लोगों के लिए ही है तो उनकी भूल है। मन को साफ करलें….। जैसे मैने कर लिया है और किसी की भावना को आहत किया हो तो उसके लिए तो क्षमाप्राथी हूं। मेरे लेख को पढ़ने के लिए धन्यवाद…।

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My name is Sadhana Bhushan. I love to write which I feel from my heart. Its journey has been started since my childhood. In My college day lots of articles and story has been published in local newspaper. I know Maithili, Hindi, Magahi and English. May be my English could be not strong because I have started English after my marriage while I had to do post-graduation in journalism. So, I have two degrees in post-graduation first in economics (Magadh university Patna) 2nd in journalism (Sikkim Manipal University). diploma in journalism from Magadh university Patna after film direction and production course from AAFFT. Then Join Sadhana News as an Intern coincidently. Where I have learned so many things. family and career were not going smoothly so I Have decided to write from home and my happiness not for earning It comes from writing. in lockdown period I have written 300 more than articles, story and so many things Whatever nobody was judging me because it was free, and I have learned so many things proper way to writing then journey has been started. Matram India where my First story has been published. and Pratilipi and more than two portals 9news but I was not satisfied then I have started my own website sadhana sources. Now a days three people are working with me. ( हालत कभी आसन नहीं थें . राह बहुत मुश्किल थी . अर्थशास्त्र में मास्टर हिंदी भाषा में करने के बाद इंग्लिश सीखी ताकि जर्नलिज्म की किताबें पढ़ सकूं . 2008 में डिप्लोमा किया था लेकिन घरवालों ने काम नहीं करने दिया की लड़कियों के लिए ये ठीक नहीं . मैंने बहुत से मेडल्स कॉलेज में जीता था पर सबको लगता था की अगर हाथ पैर टूट गया तो कौन शादी करेगा और मुझे बहार खेलने के लिए नहीं जाने देते थें . मैंने बात मान ली लेकिन सपने को छोड़ा नहीं . फिर उनकी बात मानकर शादी कर ली ताकि राजधानी में मेरा कुछ भला हो सके .फिर मैंने फिल्म प्रोडक्शन और जर्नलिज्म में मास्टर किया .कंप्यूटर में डिप्लोमा किया घर के साथ कुछ न कुछ करती रही . प्रोडक्शन के बाद मुझे बाहर जाने का अवसर मिला था लेकिन वही बात महिला को बाहर जाने का कोई प्रोयजन नहीं मैं चुप रही पर मेरे सपने मुझे सोने ही नहीं देते थे फिर मैंने जैसे तैसे साधना न्यूज़ में इंटर्नशिप किया लेकिन घर से 30 किलोमीटर जाना और 30 किलोमीटर आना आसान नहीं था क्यूंकि अब घर में मेरा बेटा भी था जिसको मेरी ज्यादा जरुरत थी . लेकिन सपने मेरी उम्र के साथ बढ़ रह थें . फिर मैंने ऑनलाइन लिखना शुरू किया और ये सफ़र अभी भी जारी है और उम्र के आखिरी पड़ाव तक चले इतनी सी तमन्ना है . मैं अक्सर ये सोचती थी की क्या करुँगी इतना सब सर्टिफिकेटस का सब बेकार हैं .लेकिन अब जब लिखना शुरू किया तो सब की जरुरत होती है तो अच्छा लगता है. बस मैं इतना कहना चाहती हूँ की अगर आपने सपने देखें हैं तो उसको पूरी करने की जिम्मेदारी भी आपकी ही है और जब आप सोने जाएँ तो सपना आपको सोने न दे . और उस सपने को पूरा करने के लिए अपने व्यस्त दिनचर्या से थोड़ा समय जरुर निकालें वरना आप जिन रिश्तों में उलझे हैं वही सबसे पहले ताने मारते है और वो ताना चुभता बहुत है ; क्यूंकि ये सब मेरे साथ हो चूका है . साधना भूषण

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