भारत ने अमेरिका से मांगी बोफोर्स घोटाले की नई जानकारी

भारत ने अमेरिका को एक अनुरोध भेज कर ₹64 करोड़ के बोफोर्स घोटाले की महत्वपूर्ण जानकारी देने की मांग की है। भारत के इस पहल से स्वीडन से 155 मिमी फिल्ड आर्टिलरी बंदूकों की खरीद को लेकर राजीव गांधी की सरकार के अंतर्गत हुए इस घोटाले की जांच फिर से की जा सकती है।
एक नामी अखबार ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया कि सीबीआई ने वर्तमान में विशेष अदालत द्वारा जारी पत्र अमेरिकी न्याय विभाग को भेजा है। जिसके माध्यम से अमेरिकी निजी जासूसी कंपनी (फेयरफैक्स) के प्रमुख माइकल हर्शमैन से जुड़ी जानकारी की मांग की गई है।

हर्शमैन ने 2017 में यह दावा करते हुए कहा था कि तात्कालिक प्रधानमंत्री राजीव गांधी बहुत ही गुस्से में आकर स्विस बैंक के खाते मॉन्ट ब्लांक का पता लगाया था। जहां कथित तौर पर बोफोर्स की रिश्वत की रकम जमा की गई थी। हर्ष मैं अभी कहा था की तत्कालिक सरकार ने उनकी जांच को जानकारी दिया था।
सीबीआई ने अक्तूबर 2024 में दिल्ली की अदालत से पहली बार संपर्क किया था। ताकि उन्हें अमेरिकी अधिकारियों से जानकारी प्राप्त करने हेतु मंजूरी की अपील की थी। यह उस समय की घटना है। जब हर्शमैन ने भारतीय जॉंच विभागों के साथ काम करने की सहमति दी थी।

रोगारिटरी पत्र एक औपचारिक लिखित विनती है। जिसे किसी देश की अदालत किसी दूसरे देश की अदालत से आपराधिक मामले में सहायता प्रदान करने के लिए भेजती है। ताकि अपराधिक जॉंच में मदद मिले।
स्विडिश रेडियो के माध्यम से बोफोर्स घोटाले का खुलासा हुआ था। जिससे भारत और स्विडन दोनों देश सकते में आ गए थे। 1989 में हुए आम चुनावों मे भी बोफोर्स का असर हुआ था। जिससे कांग्रेस की सरकार सत्ता से बाहर हो गई थी।
बहरहाल, दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2004 में राजीव गांधी के खिलाफ रिश्वत के आरोपों को नकार दिया था। लेकिन वर्तमान में भी बोफोर्स मामले से जुड़े सवाल उठाए जाते रहते हैं।
इस घोटाले में इटली के ओटावियो क्वात्रोची का नाम भी जुड़ा था। राजीव गांधी सरकार में वह सबसे ज्यादा प्रभावशाली व्यक्ति माना जाता था। जांच के क्रम में उसे भारत छोड़ने की अनुमति मिली। इसके बाद वह मलेशिया चला गया।

बाद में यूपी सरकार के समय क्वात्रोची एक बार फिर से सबके निशाने पर चढ़ गया। जब ब्रिटेन में उसके खाते से लाखों डॉलर की राशि वह निकल रहा था। लेकिन सरकार ने उसे जाने दिया।
1990 में इस घोटाले पर सीबीआई ने प्राथमिकी दर्ज की थी। फिर 1999 व 2000 में चार्जशीट दाखिल किया गया। इन सबके बावजूद, राजीव गांधी को बरी कर दिया गया था। अंततः विशेष अदालत द्वारा हिन्दुजा बंधुओं व अन्य आरोपियों के खिलाफ सभी आरोपों को खारिज कर दिया।
2011 के अदालत के फैसले से क्वात्रोची भी बरी हो गया। इसके बाद सीबीआई द्वारा की गई उसके खिलाफ कार्रवाई को वापस ले लिया गया।
मोदी सरकार के इस फैसले से एक बार फिर ऐसा लगता है। जैसे बोफोर्स घोटाले की फिर से जॉंच होगी। अमेरिका को भेजे गए अनुरोध से यह स्पष्ट होता है कि सरकार इस मामले के नए पन्ने खोलेगी। अब ये देखना है कि इस जॉंच में नया क्या सामने आता है।
साभार: न्यूज 1 इंडिया
