छठ की समाप्ति के बाद सुने पड़े घाट

कद्दू भात से शुरू हो कर सुबह के अर्घ्य पर जाकर समाप्त हो जाता है छठ पर्व लेकिन, अपने साथ दे जाता है एक सूनापन।
बिहार की पहचान है छठ पर्व जो कि हर बिहारी के दिल में बसता है छठ मतलब बिहारियों की धड़कन।

छठ पूजा साल में दो बार मनाया जाता है, एक पूजा जो कि कार्तिक मास में मनाया जाता है चूंकि वो सर्दी का समय होता है तो व्रतियों को उतनी प्यास नहीं लगती होंगी, चैत मास के छठ की तुलना से कठिन तो व्रत नहीं है।

कद्दू भात से होती है इस व्रत की शुरुआत
कार्तिक मास में तो लोग पूरा महीना लहसन और प्याज छोड़ते हैं अरवा खाना खाते हैं। सूर्य उदय से पहले स्नान करते हैं और पूरे महीने बहुत ही कठिन नियम का पालन करते हैं। दिवाली के छठे दिन होता है कार्तिक मास का छठ उसकी शुरुआत कद्दू भात से हो जाती जिसमें व्रती महिला और पुरुष नहा-धोकर व्रत वाला भोजन करते हैं। और जिसमें कद्दू की सब्जी जरूर होती है। ये प्रक्रिया दोनों छठ पूजा में होती है।

खाना
सांझ के अर्घ्य – इसमें पूरे दिन निराहार रहना होता है और शाम की पूजा के बाद बस खीर, मूली और रोटी चढ़ाया जाता है और व्रतधारियों को भी वही सेवन करना होता है। सांझ के अर्घ्य – इसमें पूरे दिन निराहार रह कर ठेकुआ और बाकी प्रसाद बनाया जाता है जोकि बांस और मिट्टी के बर्तन में चढ़ाया जाता है। इसके पीछे एक यह भी विशेषता है कि बांस और मिट्टी के बर्तन बनाने वाले का रोजगार चलता रहे।

जोकि इस पर्व की खूबसूरती को दर्शाता है। सांझ के अर्घ्य वाले दिन निराहार रहना होता है और ढलते सूर्य को प्रणाम करके उनकी पूजा की जाती है। जोकि इस पर्व की खूबसूरती है और जिसकी पूरी दुनिया कायल भी है कि ढलते सूर्य की भी पूजा की जा सकती है क्या भला।

सुबह के अर्घ्य के साथ पूजा की समाप्ति फिर अगले सुबह सूर्य उदय के साथ उगते सूर्य की भी आराधना होती है जोकि बहुत ही सुंदर दृश्य होता है। सर्दी की छठ हो या गर्मी की छठ, आराधना में कोई कमी नहीं रहती।
घाट से आने के बाद छठ व्रती अपना व्रत तोड़ती हैं, और सबको अपना आशीर्वाद देती हैं।
साधना भूषण के द्वारा