मिथिला स बाहर छी और चाही मिथिला के सामान तखन एम्हर आबी जाऊ
जी हाँ हम भांग नै खेने छी सही कही रहल छी /

कतेक बेर एहन होई अछि ने की सब समांग आन्हा के अपन शहर में उपस्थित रहए ता छथिन लेकिन विवाह भ गेल उपनयन एवं मुंडन भ गेल तब गाँव स विशेष रूप स सामान मंगवा के लेल किनको गाम भेजू .. जबकि उ खर्चा अनेरो के लगये छई ..

.की सबकोई ता एते रही बेकार सामान लाब के खर्च भ गेल . तहन्न इ समस्या के देखैत में स्वर्णिम कर्ण के मन में एकटा विचार एलई किया ने दिल्ली में रही क ईहे काम शुरू केल जाए और लोक सबके परेशानी के दूर कर के चाही / फेर जन्हा चाह तहा राह मंजिल ता मुश्किल छल लेकिन चतरा के धिया जखन ठानी लेलथ ता फेर पीछे मुड़ी क देख के जरुरत नई परले . हालांकि शुरू में कठिनाई के सामना केलखिन लेकिन हिम्मत स अपना कार्य में जुड़ल रह्लेथ ..

और ताहि के परिणाम छैन जे वो ऑनलाइन और ऑफलाइन दुनु जगह अपन सामान के पहुचावे छथि …टुडे यूज़ नाम स अपन सामान के पहुचावें छथिन और हुनकर सब जगह तारीफ होई छनी .. हुनकर इ कोशिश स बहुत लोग के गाम जाक सामान लाव के परेशानी बची गेलेन. आश्चर्य के बात इहो छनी की गाँव के लोग भी हुनका स अपन जरुरत के सामान मंगवे छथिन जे बहुत ही गर्व के बात अछि ..

अगर आन्हा के घर में भी मिथिला व्यवहार के कोई सामान चाही जेना वटसावित्री , मधुश्रावनी ,मुंडन ,उपनयन विवाह आदि के सामान ता आन्हा अगर डेल्ही में छि ता हिनका सा संपर्क करी सकय छी .. /नै ता कोउरीर सा भी मंगा सकय छी ../

मिथिला के बेटी के बहुत सारा धन्यवाद और वाकई एकर ऊ हक़दार छथिन .. जे अपन मिथिल संस्कार के व्यवसाय के रूप में आगा लेलथ ../

हालांकि हुनका इ सब सामान विभिन्न जगह स मंगवा पड़े छनी लेकिन स्वर्णिम कभी भी हिम्मत नै हारये छथिन .. डेल्ही में रहा वाला ब्राहमण और क्यास्थ समाज के लेल हिनकर दूकान वरदान साबित भेल अछि .. /
साधना भूषण के कलम से …फोटो साभार स्वर्णिम कर्ण …/