नदी पार करने के बदले वाहनों से कर रहे अवैध वसूली
करीब 3 नवंबर के सुबह की बात है ।हम बिहार से दिल्ली के लिए निकले। छठ पूजा के बाद सबको अपने अपने काम पर तो लौटना ही था।
लेकिन एक दो दिन पहले मोँठा नामक तूफान के आने से लोगों की जिंदगी अस्त व्यस्त सी हो गई थी। और हर तरफ़ बारिश का कहर था।
सो हम निकल पड़े अपने मंजिल की ओर।
हमारा गांव दरभंगा जिले में हैं जहां से निकलना था ।और हम आगे यानी कि दरभंगा की तरफ यानी कि आगे की ओर न जाकर पीछे के रास्ते यानी कि रुन्नी सैदपुर होते हुए मुजफ्फरपुर होते हुए पटना निकलने के लिए सुझाव आया ताकि हम जाम में न फंसे।
लेकिन होनी को तो कुछ और ही मंजूर था । पूरा हाईवे सुनसान पड़ा था ।लोग जैसे तूफान के जाने के बाद की शांति में नींद में सो रहे थे।
हम जैसे आगे की ओर तेज रफ़्तार से बढ़ रहे थे वैसे ही ही सामने से एक बूढ़े चाचा जी ने कुछ इशारा किया ।शायद वो इशारे से मना कर रहे थे लेकिन हम दोनों ने शायद क्राइम पेट्रोल और सावधान इंडिया कुछ ज्यादा ही देख लिया था हम रुके ही नहीं ।
फिर कुछ ऐसा हुआ कि हमें रुकना पड़ा।
क्योंकि सामने रास्ता बंद था ।यानी कि आगे की सड़क नदी में तब्दील हो चुकी थी।
अब हमारा दिमाग सुन्न पड़ गया की काश उस बूढ़े चाचा की बात मान ली होती तो इतनी दूर नहीं आना पड़ता।लेकिन जाना तो था आगे सो हम निकल लिए यूटर्न लेकर लेकिन सफर तो बहुत मुश्किल थे ।
हमने जब कच्ची सड़क पकड़ ली जो कि मिट्टी से सन्नी हुई थी । चार पहिया वाहन तो अंदर की ओर धंस रही थी ।
देख देख के दिल बैठा ही जा रहा था । पता नहीं शायद हम इस गिले रास्ते में न समा जाए और रास्ता अब ऐसा हो चुका था कि पीछे नहीं मुड़ सकते थे क्योंकि रास्ता वनवे हो चुका था।
भगवान का नाम लेकर आगे बढ़ रहे थे कि एक नदी आ गई नदी पर जो पूल था वो पीपा पुल के जैसा था ।
भगवान भगवान करके उस पर अपनी कार चढ़ा ली लेकिन ऊपर की सांस ऊपर और नीचे की सांस नीचे रही लेकिन भगवान ने नैया पार करवा दी लेकिन जब हम नदी क्रॉस कर गए तो तीन चार लोग मिलकर अवैध वसूली करने में लगे थे ।
कार वालों से अलग बाइक वालों से अलग साइकिल वालों से अलग पैसे मांग रहे थे ।
एक पूरा का पूरा हाइवे का रास्ता नदी में समाया हुआ था कितनी परेशानी की बात है और आप जब दूसरा रास्ता क्रॉस करने जा रहे हैं तो आपसे अवैध वसूली किया जा रहा है ये कहकर कि प्राइवेट पुल है ।
लेकिन दिन भर में ये लोग कितना पैसा कमाते होंगे बिना अपने पैसे लगाए।
और बेचारी भोली भाली जनता इन समाज के ठेकेदारों के चक्कर में आकर पैसे दे देते हैं मैने बोला मैं नहीं दे रही पर उन्होंने बहस करने से बेहतर पैसा देना समझा और रास्ता भी सुनसान ही था कि अकेले में हम इनसे जीत भी नहीं सकते अगर बहस की तो ।
बस यही बात बतानी थी लोग आपदा में कमाने का अवसर जरूर ढूंढ लेते हैं।
ये नहीं सोचते कि सामने वालों को इतना असर पड़ेगा बस अपने लिए ही सोचते हैं।