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आखिरी सफ़र

मेरी चिता धू धू करके जल रही थी। बगल में मेरा बच्चा बिलख बिलख के रो रहा था। पति भी सिसक सिसक के रो रहे थे। बहुत ही विचलित करने वाली स्थिती थी। दरअसल मैं अचानक से हृदय गति के रुकने से काल के गाल में चली गई थी …और भी रिश्तेदार और करीबी दोस्त थे, सबके सब बहुत रो रहे थें। मेरा तो दिल किया कि कोई चमत्कार हो और मैं जलती चिता से कूदकर निकल आऊं लेकिन मेरे बस में कुछ भी नही था। अब तो मैं जल भी चुकी थी।

एकाध घंटे पहले जब मैं अचानक से मौन हो गई थी तो पहले तो पति देव ने बहुत कोशिश की मुझे जगाने की। उन्हे लगा कि शायद बेहोश हो गई होंगी लेकिन प्राण तो मेरे निकल चुके थें। लाख कोशिशों के बाद भी जब मैं नही जागी तो कन्फर्म हो गया। अब तो मैं रही नहीं। वो जोर जोर से रो रहे थे। जब तक बेटा भी उठ कर कुछ समझता कि सब आस पड़ोस के लोग मुझे देखने आने लगे। जो मुझे पसंद नहीं करते थें। मुझे देख कर मुंह घुमा लिया करते थे। वो भी मेरी आखिरी झलक को लालायित हो रहे थे। हाथ जोड़ के मुझे श्रद्धांजलि दे रहे थें। कैसे मैं अचानक से दुनिया से अलविदा हो गई? लोगों के साथ मैं भी इसी मंथन में थी। जो आ रहा था यही बोलें जा रहा था कि अभी कल तलक तो ठीक थी अचानक से क्या हो गया? किसी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था …।

पता नही कौन सी शक्ति थी? मैं सब समझ पा रही थी। तस्वीरें धुंधली सी थी और आवाजें साफ। अब मैं मरने का गम मनाऊं या दो चार बातें थी कि मैं सुकून से मर सकती थी। वैसे तो मेरा बेटा बहुत परेशान था। उसे कोई ये नही बता रहा था कि मम्मी को हुआ क्या? वो उठ क्यों नहीं रही और मेरी मम्मी जिनकी मैं इकलौती संतान थी उनका क्या ही होगा मेरे जाने के बाद …। रही बात पति की तो सास इतनी इंटेलिजेंट हैं उनकी शादी तुरंत ही करवा देंगी। लड़की वालों को तो चूना लगाने में एक्सपर्ट हैं ही, कुछ भी कह देंगी ….। सो पति की चिंता तो मुझे कतई न थी ….।

और सुकून कि मैं कल ही पार्लर चली गई थी वरना जिंदा में तो कोई नहीं मिलने आ रहा था। अभी कुछ दिन पहले इतनी तबियत खराब हुई। कोई देखने भी नही आया था। अब देखो सारे कैसे मगरमच्छ के जैसे आंसू बहा रहे हैं …। अब मेरे साथ आखरी सेल्फी ले रहें है और स्टेटस पर डाल देंगे रेस्ट इन पीस। कुछ तो शॉर्ट कॉर्ट ही लगाएंगे rip…। तो पार्लर जाना तो काम आया ..।

दूसरा मैने रात को बर्तन साफ कर लिये थे। कपड़े भी तह लगा दिए थे। वरना सासू मां तो मेरे मरने के बाद भी कहती, “किचन फैला रखा है…।” अभी लास्ट ईयर मेरी एक जिठानी चली गई दुनिया से। बिल्कुल मेरे जैसे ही गई। सब ठीक ठाक था। सुबह चार बजे उनकी लड़की का फोन आया कि मम्मी को हर्ट अटैक आया और हॉस्पिटल जाते जाते उनकी डेथ हो गई है। अब सुनकर ऐसा झटका लगा कि जैसे जमीन ही पैरों के नीचे से निकल गई थी लेकिन जब तक वहाँ पहुंचे, जीठानी मेरी बॉडी बन चुकी थी। सब लोग उन्हे बॉडी कहकर बुला रहे थें। उनकी दोनो बेटियां ससुराल से आ चुकी थी और तीसरी, जिसकी शादी करीब पांच महीने पहले हुई थी। आज वो ही आने वाली थी लेकिन विधि का विधान क्या ही कहना…। आज तीनों बहनें मिलने वाली थी। जिठानी ने तीनों को बुलाया था। घर तो इतना नीट एंड क्लीन था कि शब्दों में बयां नहीं कर सकते। पतीले में थोड़ा सा दूध रखा था, बस कि सुबह की चाय बन सके। बेसिन में एक भी बर्तन नही। बेडशीट एकदम तरीके से बिछे हुए। एक सिलवट तक नही। बेचारी ने इतनी सारी तैयारी अपनी तीनों बेटियों के लिए कर रखी थी। उन्हें क्या पता था कि पूरा जमाना उनके आखिरी दर्शन को आएगा …।

जब हम पहुंचे तो दोनो बेटियां आ गई थीं। इंतजार तीसरी का हो रहा था। धीरे धीरे सारे दोस्त, रिश्तेदार इकठ्ठे हो रहे थे। भीड़ जमा हो रही थी। लोग प्रणाम करके जमा हो रहे थे। अब उन्हें इस बात की जल्दी थी कि कब क्रियाकर्म हो और वो निवृत हो कर जाएं …।

मैं बगल में बैठी हुई सोच रही थी कि बताओ इंसान कैसे जब शरीर त्याग दे तो रिश्तेदारी खतम। वो बॉडी हो जाता है। क्या नियम है इस संसार के, खोखले से हम सारी उमर घर घर करतें है। कष्ट काटकर किश्तें भरते हैं और जब हम दुनिया से अलविदा हो जाए तो लोग जो हमारे अपने थे वो चार कंधे पर उठाकर शमशान में अकेले छोड़ आते हैं …।

तभी जिठानी की तीसरी बेटी आ गई। लाल साड़ी पहन रखी थी। एकदम से भागती हुई पल्लू सम्हालने का होश किसको था। सब उसी को देखते रहें। वो रोती रही। तब तक उनका कुत्ता जिसको छत पर बांध रखा था, वो भोंके जा रहा था कि मेरी मालकिन आज उठ क्यों नही रही? क्या बताऊं? जब दीदी को ले जा रहे थें, कुत्ते का बस नही चल रहा था कि जंजीर तोड़ कर भाग जाए उनके साथ। फिर उनके जाने के बाद सबने उसकी जंजीर खोल दी। उसके बाद सबने देखा कि जहाँ पर दीदी को लिटाया गया था वो उसको सूंघ सूंघ के पागल हुआ जा रहा था…। उसको देख कर शायद ही कोई ऐसा हो जिसके आंसू उसके आंखों में थम गए हो ….।

तो बात मैं अपनी कर रही थी, तो दीदी की याद आ गई। दरअसल उस दिन के बाद से मैं कभी भी बिना बर्तन धोए नहीं सोती थी। लगता था कि अगर मैं रात को मर गई तो सासू मां तो मुझे मरने भी न देती। उधर भी ताना मारती कि बर्तन भी नही मांजे और मरने की इतनी जल्दी थी कि जूठा छोड़कर चली गई मैडम। इतनी टेंशन रहती थी कि प्रेशर में मर भी नही पा रही थी। खैर आज तो प्रॉपर तरीके से ही मरी थी। इस बात का मलाल नहीं था कि सास मरने के बाद भी ताने दे, लेकिन उन्होंने तो ताना देना था तो दे डाला। मरना था तो इतने साल के बाद मरी, अब कोई लड़की भी जल्दी नही मिलेगी ….।

खैर मेरा अंतिम संस्कार हुआ। मुझे तरीके से लकड़ी पर जलाया गया जो मैं अक्सर सोचा करती थी। मेरे पापा के जाने के बाद मेरी परवरिश ननिहाल में हुई थी। बहुत लाडली थी मैं। नानी मेरी एक भी चीज को वेस्ट नही करती थी। अगर वो पढ़ती या उन्हें कोई गाइड करता तो रिसाइकिल में देश को बहुत आगे ले जाती लेकिन ऐसा तो नहीं हुआ। उन्होंने घर के हर एक कोने को बहुत अच्छे से वेल ऑर्गनाइज्ड करके रखती। वो कहते हैं न कण से अन्न बनाने वाली महिला थीं। तो बात लकड़ी की कर रही थीं मैं। नाना जी के पास आम के कई बागान थे और भी कई किस्म की लकड़ियां रहती थी। तो वो कभी भी बढ़िया वाली लकड़ी नही जलाती थी। हमेशा पहले पत्ते और पतली लकड़ियां जलाती थीं, जिससे धुंआ ज्यादा आता था। जो सबसे बहतर वाली लकड़ी होती थी उसको सम्हाल के रखती थी क्योंकि उन्हें लगता था कि नाना बूढ़े हैं। उन्हें कुछ हो गया तो अचानक से लकड़ी कैसे मैनेज होगी …। इसलिए उन्होंने आम की इतनी सुंदर लकड़ियां जमा करके रखीं थी। एकदम चंदन के जैसे जलती थी। कभी कभी मैं चुरा के जला लेती थी। हालांकि देखने के बाद मुझे डांट पड़ती थी…।

एक मजे की बात बताऊं? नाना कहते आप चली जायेंगी तो आपका श्राद्ध कर देंगे, वरना मैं पहले चला गया तो ये लोग पता नही क्या ही करेंगे? वो एक टीचर थे। हर बात को ड्यूटी समझते थें। पहले तो गुस्सा बहुत आता था और लड़ाई भी खूब हुई थी मेरी कि अगर आपको कोई ऐसे कहेगा तो कैसा लगेगा? तो कहते मुझे बहुत खराब लगेगा और नानी कहती थी तेरे नाना जायेंगे तो मुझे पेंशन मिला करेगी क्योंकि नाना खुद ही सारा पैसा रखतें थे। नानी भी आम वगेरह के पैसे से इधर उधर करती थीं लेकिन उनके आखरी समय में सत्ता उनके हाथ में आ गई थी लेकिन सुख कहां लिखा था। वो उन लकड़ियों को सूखा कर रखती थी। आपको जान कर आश्चर्य होगा कि नानी की करोना में मृत्यु हो गई। अपने गांव से दूर गांववालों के डर से पता नही वो कैसा व्यवहार करेंगे? नानी का अंतिम संस्कार होने देंगे कि नही। सो उन्होंने शहर में ही संस्कार कर दिया….। नाना बेचारे तो दर्शन भी नही कर पाए। दोनो तोता और मैना की तरह रहते थें। सो जाने क्या हो गया इस जोड़ी को…।

मेरी नानी जो जाने कितने सालों से अपने लिए लकड़ी जोड़ के उसको सूखा के रखती थी। अगर गांव में किसी को उपले पर जलाते देखती तो कहती, “इसको मैं लकड़ी दे देती क्यों उपले में जलाया?” और मेरी प्यारी नानी दुनिया से जाने के बाद उनकी चिता उपले में जली। कैसी विडंबना थी? मैं इधर दिल्ली में थी। खुद ही करोना से ग्रसित थी। रहती पास में तो कुछ न कुछ जरूर करती लेकिन वक्त के हाथो मजबूर हो गई थी….।

बाद में मम्मी ने सारी लकड़ियां निकाल कर बाहर फेंक दी। वो लकड़ियां बारिश में गीली होती रहती थी, साथ में मेरी आंखें भी। नानी जून की तपती दोपहर में इनको सुखाती थी कि इसको जलने में आसानी हो और साथ में उनको भी। मुझे नही लगता दुनिया में कोई ऐसा इंसान होगा कि अपने मरने की लकड़ियां इंतजाम करके मरे और वो उसके नसीब में न हो। कैसी विडम्बना थी?

नानी और नाना के 6 बच्चे थे। नाना सरकारी प्राइमरी स्कूल में टीचर थे। उसी पैसे में सबको बड़ा किया। बेटियों की शादी दहेज देकर अपने से बड़े घर में की। सब बच्चों के मुंडन, उपनयन, कुल मिलाकर जिंदगी भर यही सब किया। कभी अपने लिए पक्का घर नही बनवाया। जब लास्ट में नानी अपनी पोती की शादी से लौटी तो अपना कच्चा मकान तुड़वा दिया क्योंकि वो अब आराम करना चाहती थीं, अपने पक्के घर में। जब आंधी में बर्फ के गोले गिरते थे तो उससे डरना नहीं उसको देखना चाहती थीं। घर तुड़वाया और उसके बाद ही वो चल बसी। घर तो धीरे धीरे बन ही गया। आज बहुत बड़ा घर है लेकिन उसमें रहने वाला कोई नहीं है। प्रभु की लीला अजीब सी, समझ में ही नही आता कि इंसान को थोड़ा सा वक्त क्यों ही नही देते? अब उस घर में कोई नहीं रहता, मम्मी और नाना जी के आलावा। नाना नानी को याद करके रोते रहते हैं। सब है पर नानी नही है। अजीब ही है।

हम जिंदगी भर बुढ़ापे तक का सोचते रहते है। उसके बाद का भी। अपने बच्चों के बुढ़ापे का भी लेकिन ये नही सोचते कि इसी शरीर ने इतने दुख सहकर बच्चों के लिया घर बनवाया, गाड़ी की किस्तें भरी और बाद में शरीर से प्राण निकलते ही बॉडी कह कर लोग बुलाने लगते हैं….।

अब तो मेरी चिता जलकर राख हो चुकी थी ….। सबलोग मुझे अकेले छोड़ के जा चुके थे। वो पति जो मुझे अकेले नुक्कड़ तक नही जाने देते थे। अगर वो साथ न जा पाए तो भाई को साथ पक्का भेज देते थें कि अकेले नहीं होगा। आज सब मुझे छोड़ के जा चुके थे ….। अब मैंने सोचा कि 13 दिन तक तो मैं पृथ्वी पर ही रहूंगी तो क्यों न अपने घर जाकर अपने बच्चे को निहार लूं। वो मुझे नही देख पा रहे हैं तो क्या? मैं तो देख लूंगी और यही सोच मैं घर की तरफ रवाना हुई …।

दृश्य अच्छा नहीं था। बच्चा मेरा बुरी तरीके से रो रहा था। पति कोने में सिमटे से बैठे थें, भाई दुसरे कोने में, कौन किसको क्या समझाए? मैं कुछ बोलने की कोशिश कर रही थी पर शायद कोई सुन ही नही पा रहा था। सो मैं भी एक कोने में बैठ गई। फिर धीरे धीरे लोग मेरी मुक्ति के लिए साधु संत के बताए सारे उपाय कर रहे थें। लग रहा था कि अगर मेरे बोलने की शक्ति वापिस आ गई तो तंत्र मंत्र भी कटवा लेते। कितना अजीब था न, मैने अपने घर के लिए कितने कष्ट सहे थे। कितनी बार अपने मनपसंद कपड़े नहीं लिए। कितनी वो चीजें नहीं की जो मैं करना चाहती थी। मेरी उम्र की महिलाएं करती थी पर मै नहीं, ताकि किस्त टाइम से जाए और अब। कहीं वापिस से न आ जाऊं उसकी तरकीब निकाली जा रही थी…।

अचानक से मुझे लगा कि मैं पसीने से गीली हो गई थी। मैंने सुना था भूतों के तो पसीने आते ही नही। फिर….. फिर क्या हुआ था? तब तक मेरे कानो में आवाज आई मम्मा उठो स्कूल के लिए देर हो रही है। ओह तो ये सपना था। थैंक यू भगवान जी, मुझे जिंदा रखने के लिए। मुझे मेरे बच्चे के पास वापिस भेजने के लिए और ये समझाने के लिए कि हम जिंदगी भर घर घर करतें है। तेरा मेरा करतें है, पर साथ कुछ नही जायेगा। सब भगवान का है। पहले भी उसी का था। अभी भी उसी का है। हम बस इधर सैर सपाटे के लिए आए हैं। असली जगह तो प्रभु के चरण में हैं।

लेखक साधना भूषण के कलम से

sadhanasource.com

My name is Sadhana Bhushan. I love to write which I feel from my heart. Its journey has been started since my childhood. In My college day lots of articles and story has been published in local newspaper. I know Maithili, Hindi, Magahi and English. May be my English could be not strong because I have started English after my marriage while I had to do post-graduation in journalism. So, I have two degrees in post-graduation first in economics (Magadh university Patna) 2nd in journalism (Sikkim Manipal University). diploma in journalism from Magadh university Patna after film direction and production course from AAFFT. Then Join Sadhana News as an Intern coincidently. Where I have learned so many things. family and career were not going smoothly so I Have decided to write from home and my happiness not for earning It comes from writing. in lockdown period I have written 300 more than articles, story and so many things Whatever nobody was judging me because it was free, and I have learned so many things proper way to writing then journey has been started. Matram India where my First story has been published. and Pratilipi and more than two portals 9news but I was not satisfied then I have started my own website sadhana sources. Now a days three people are working with me. ( हालत कभी आसन नहीं थें . राह बहुत मुश्किल थी . अर्थशास्त्र में मास्टर हिंदी भाषा में करने के बाद इंग्लिश सीखी ताकि जर्नलिज्म की किताबें पढ़ सकूं . 2008 में डिप्लोमा किया था लेकिन घरवालों ने काम नहीं करने दिया की लड़कियों के लिए ये ठीक नहीं . मैंने बहुत से मेडल्स कॉलेज में जीता था पर सबको लगता था की अगर हाथ पैर टूट गया तो कौन शादी करेगा और मुझे बहार खेलने के लिए नहीं जाने देते थें . मैंने बात मान ली लेकिन सपने को छोड़ा नहीं . फिर उनकी बात मानकर शादी कर ली ताकि राजधानी में मेरा कुछ भला हो सके .फिर मैंने फिल्म प्रोडक्शन और जर्नलिज्म में मास्टर किया .कंप्यूटर में डिप्लोमा किया घर के साथ कुछ न कुछ करती रही . प्रोडक्शन के बाद मुझे बाहर जाने का अवसर मिला था लेकिन वही बात महिला को बाहर जाने का कोई प्रोयजन नहीं मैं चुप रही पर मेरे सपने मुझे सोने ही नहीं देते थे फिर मैंने जैसे तैसे साधना न्यूज़ में इंटर्नशिप किया लेकिन घर से 30 किलोमीटर जाना और 30 किलोमीटर आना आसान नहीं था क्यूंकि अब घर में मेरा बेटा भी था जिसको मेरी ज्यादा जरुरत थी . लेकिन सपने मेरी उम्र के साथ बढ़ रह थें . फिर मैंने ऑनलाइन लिखना शुरू किया और ये सफ़र अभी भी जारी है और उम्र के आखिरी पड़ाव तक चले इतनी सी तमन्ना है . मैं अक्सर ये सोचती थी की क्या करुँगी इतना सब सर्टिफिकेटस का सब बेकार हैं .लेकिन अब जब लिखना शुरू किया तो सब की जरुरत होती है तो अच्छा लगता है. बस मैं इतना कहना चाहती हूँ की अगर आपने सपने देखें हैं तो उसको पूरी करने की जिम्मेदारी भी आपकी ही है और जब आप सोने जाएँ तो सपना आपको सोने न दे . और उस सपने को पूरा करने के लिए अपने व्यस्त दिनचर्या से थोड़ा समय जरुर निकालें वरना आप जिन रिश्तों में उलझे हैं वही सबसे पहले ताने मारते है और वो ताना चुभता बहुत है ; क्यूंकि ये सब मेरे साथ हो चूका है . साधना भूषण

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