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एक गिलहरी की आत्मकथा

पिछले कुछ दिनों की बात है मैं कुछ लिख रही थी की मुझे लगा कोई हल्की आवाज में मुझे कुछ कह रहा है मैंने पलट के देखा तो एक गिलहरी थी ,मुझे लगा की मेरा वहम हो मैं दुबारा से अपने काम में व्यस्त हो गयी लेकिन कुछ देर बाद फिर से वही आवाज आई अब मैंने गौर से देखा तो वो गिलहरी मेरी तरफ बहुत विनम्रता से देख रही थी उसके बाद  मेरे उसकी और देखने से ये तय हो गया की वह कुछ कहना चाह रही थी मैंने आश्चर्यचकित होकर पूछा तुम हम इंसान की भाषा कैसे बोल सकती हो ?

उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया की मुझे भगवन जी ने यह वरदान दिया है इसलिए मैं तुम इंसान की भाषा बोल सकती हूँ .मेरे मन में उसके बारे में जानने की जिज्ञासा बढ़ गयी.मैंने भी अपना लिखना विखना छोड़ा और उसकी बातें ध्यान से सुनने लगी. तभी उसने एक शर्त रखी की गर मैं उसकी आत्मकथा लिखती हूँ तो वो आगे की कहानी कहेगी.मैंने बिना सोचे हाँ कह दी .क्यूंकि ऑफिस में वैसे ही बॉस का प्रेशर रहता है की लीक से हटकर स्टोरी लिखो तो लो शायद भगवान ने मेरी सुन ली . मैंने गिलहरी से कहा मुझे तुम्हारी शर्त मंजूर है अब बताओ क्या बताना है.

गिलहरी ने बताना शुरू किया की मैं सामने वाले आम के पेड़ पर रहा करती थी ऊपर के डाल पर एक कौवे की फैमिली रहा करती थी .दिन भर मैं अपने चंचल स्वाभाव के कारण इस डाल से उस डाल पर फिरा करती दुनिया की कोई फ़िक्र नहीं थी जब भी कौवा अपनी फैमिली और बच्चों के लिए कुछ लाता और जब छोटें बच्चों के चोंच में  कुछ डालता तो भोजन के कुछ अंश नीचे गिर जाते तो मैं अक्सर उन्हें उठा के खा लेता और वो मेरी छोटी सी पेट के लिए पर्याप्त होता और कुछ अंश अगर मैं गिरा देता तो नीचे  वाली डाल पे चीटियों का परिवार था वो खा लेते कुछ इस तरह से हमारी जिन्दगी चल रही थी की एक दिन अचानक से मेरी सांस उखड़ने लगी और मेरे सामने यमराज आ आकर खड़े हो गये की चलो तुम्हारा आखरी वक़्त आ गया…आश्चर्यचकित होकर मैंने यमराज से कहा सामने पेड़ पर जो गिलहरी दादी दिख रही हैं पूरे दस साल की हैं वो नहीं दिख रही आपको मैं क्यूँ चलूँ आपके साथ मेरी तो अभी शादी भी नहीं हुई .मैं नहीं जा रही लेकिन यमराज ने ये excuse दिया की ये सब हिसाब किताब चित्रगुप्त करते हैं उधर ही बात करेंगे मुझे और भी जगह जाना है चलो .फिर मेरी आँखें बंद हो गयी और जब आँख खोला तो चित्रगुप्त कुछ लिख रहे थें लेकिन मैं उतना इंतज़ार नही कर पा रही थी.मैंने गुस्से से प्रणाम भी नही किया और नाराजगी दिखाते हुए बोला ““ माना की हम गिलहरी की उम्र कम होती है लेकिन शादी व्याह भी होते हैं बच्चें भी होते हैं क्या मेरी उम्र इतनी थी अगर हाँ तो क्यूँ”

चित्रगुप्त जी महाराज पन्ने पलट के देखने लगे फिर उन्होंने कहा यमराज से गलती हुई है तुम्हें ठीक एक वर्ष के बाद लाना था लेकिन उन्हें शायद कैलंडर देखने में ग़लतफ़हमी हो गयी अब तुम्हें वापिस उस शरीर में नही भेज सकते क्यूंकि जिस पेड़ पर तुम रहते थे उस पेड़ के मालिक ने तुम्हारा अंतिम संस्कार कर दिया .

मुझे बहुत गुस्सा आया की कभी उस पेड़ के मालिक ने एक रोटी तो नहीं दिया और सांस निकलते ही अंतिम संस्कार वाह .तभी चित्रगुप्त महारज ने ध्यान भंग करते हुए बताया की अगर तुम चाहो तो एक लड़का कोमा(ICU) में है उसके घर के लोग उसका इंतज़ार कर रहे हैं लेकिन उसको ठीक होने में टाइम लगेगा तो तुम चाहो तो उसके शरीर में प्रवेश करवा देंगे और हॉस्पिटल में उसकी एक छाया प्रतिबिम्ब डाल देंगे .तब मैंने आश्चर्यचकित होकर पूछा आप चाहो तो सीधे सीधे उस लड़के को ठीक कर सकते हैं मुझे दूसरा शरीर प्रदान कर सकते हैं फिर ये सब क्यूँ ? महाराज ने शांत भाव से समझाया की जो जैसे करता है वैसे भुगतना पड़ता है लेकिन तुमने उन चीटियों को भोजन करवया था तो तुम्हारे खाते में पुन्य थे और थोड़ी यमराज की गलती थी तो तुम कुछ दिन मनुष्य योनी में गुजारो लेकिन एक बात का सदा ख्याल रखना की तुम बस सोच सकते हो लेकिन लड़के की चलेगी और ये कहकर महारज गायब और मैं लड़के के घर पर था . उसकी माँ ने जैसे ही मुझे देखा गले लगा लिया और रोने लगी की रात से तू कहा था हम रो रो के परेशान थें फिर मेरे मुंह से निकला जो कल रात मैं जिस दोस्त की शादी में गया था वहा किसी ने ड्रिंक में किसी ने कुछ मिला दिया था सो मुझे कुछ पता नहीं चला अब होश आया तो घर आया… लड़के की माँ ने उसके माथा को चूमा और बलाएँ ली नज़र भी उतारी इतना सारा प्यार देखकर तो मैं ओत्त प्रोत हो गयी की एक माँ का प्यार कितना सुखद होताहै .. …गिलहरी यानी की मैं उसके आत्मा में तो थी लेकिन जवाब वही दे रहा था .और माँ का हिर्दय इतना निश्छल की सब बात मान गयी …बिना किसी शक के कितनी नादान होती है न माँ भी …./

अब इस तरह से मेरी जिन्दगी व्यतीत होने लगी उस लड़के की जीवन शैली की हिसाब से मैं जी रही थी पहले मैं बहुत उत्सुक थी मुझे इन्शान की जिन्दगी बहुत  पसंद थी लेकिन वो कहतें हैं न की जो चीज  जितनी ज्यादा चमकती है उसके पीछे उतना ही अँधेरा होता है , धीरे धीरे मुझे ये एहसास हुआ की मुझसे ये सब नहीं हो सकता गिलहरी ने ये बताया तो मैंने आश्चर्यचकित होकर पूछा क्या ? तो वो बताने लगी एक तो तुम इन्शान नाशुक्र बहुत होते हो किसी भी चीज की कद्र नहीं होती वो मैं जब गिलहरी थी तो मेरा दिल करता था की पिज़्ज़ा कितना स्वादिष्ट होता है कभी खाने के नहीं मिला उम्र भर पिज़्ज़ा हार्ट के बाहर खड़ा रहा टुकुर टुकुर निहारता रहा . कभी किसी ने एक टुकड़ा तक भी नहीं दिया और वो लड़का एक टुकड़ा खाता और कूड़े दान में डाल देता था . बहुत गन्दी आदत होती है तुम इन्शान की मैंने सोचा बात तो ये सही कर रही है .. फिर वो गिलहरी बताने लगी की वो लड़का जिस बजह से कोमा में गया था वो वजह भी उसने अपनी माँ को सच नहीं बताई वो अपने दोस्त से एक दिन बता रहा था की पार्टी में ओवर ड्रिंक करने के बाद गाड़ी तेज चलाने के वजह से उसका एक्सीडेंट हुआ था .लेकिन मैं कुछ बोल तो सकती नहीं थी लेकिन देखती रहती हूँ वो उसकी माँ एक दिन कह रही थी की अपने कान की बालियाँ को गिरवी रखकर उसको वो फल वाला फ़ोन दिलाया था हाँ जिस फल को लगता है मैंने आधा खा लिया हो .

“मैंने हंसते हुए कहा की अच्छा एप्पल के फ़ोन की बात कर रही हो” उसने बताया हाँ और उस लडके ने अपनी माँ से झूठ बोला था की पढाई में दिक्कत होती है बेचारी माँ भोली भाली सो दिला दिया लेकिन अब पढ़ कौन रहा है . दिन भर गेम खेलने में मशगुल रहता है और माँ बेचारी सोचती है की राजा बाबू  पढ़ रहा है ऐसा कौन करता है . पिज़्ज़ा वाली बात तो अधूरी ही रह गयी मैंने उसे बीच में टोका .. सब्र करो अभी आगे बताते हैं ..जब उस पिज़्ज़ा को छोड़ देता फिर उसकी माँ उसे कूड़ेदान में से लेकर बहार फ़ेंक देती अब इस देश में गाय को लेकर मरने मारने की बात तो करते हो लेकिन उसके बारे में सोचना किसी को नहीं है आज हर घर में कैंसर हो रहा  हैं इस विषय पर सोचना किसी को नहीं है फिर वो गाय जो सड़क पर दिन भर खाने की तलाश में भटकती रहती है जब वो पोलीथिन देखेगी तो उस पोलीथिन को कैसे खोलेगी लेकिन भूख और प्यास और खाने की और आकर्षित होकर वो  वो पन्नी के साथ ही उस फेंके हुए टुकड़े को खा लेंगी और उसके साथ  कितना प्लास्टिक पेट में जाता है और जब  मालिक को गाय की याद आती थी तो उसको पकड़  के ले जाता  फिर दूध निकालने के बाद उसे  बढ़िया सी पल्सर दो पहिया गाडी पर चढ़कर सुन्दर और साफ़ कैन में लाता और मां खुश हो जाती की दूध ग्वाला दे गया  .और फिर राजा बेटा के लिए सुन्दर और साफ़ गिलास में दूध लाकर मुझे देती मैं यानी की गिलहरी मन को मसोस  कर दूध पी लेती क्यूंकि वो गाय दिन भर सड़क पर भोजन की तलाश में भटकती रहती थी . और सोचती की कितना नालायक ये बेटा है इसको अपने माँ की जरा भी फ़िक्र नहीं और अस्पताल में सड़ रहा है और मैंने यकीनन कोई पुन्य किया था जो मुझे मनुष्य योनी में माँ मिली है और मैं इसको समझ  सकता हूँ . और मैं खुश होकर सोने जा रही थी  की देखा की माँ अल्मारी की चाभी हड़बड़ी में खोज रही थी पूछने पर बताया की  बगल में रहने वाले शर्मा जी के लड़के ने अपना एक्सीडेंट कर लिया है .वो अपने किसी दोस्त के साथ रेस लगा रहा था और सामने पोल से टकरा गया और उसके दोस्त की उसी समय मृत्यु हो गयी और उसकी हालत बहुत गंभीर है सर से खून गिर रहा है और शर्मा जी के अकाउंट में एक भी रुपया नहीं है और हॉस्पिटल वाले पहले दो लाख रूपये जमा करने के लिए बोल रहे हैं शर्मा जी ने कल ही अपने बेटे के नीट की कोचिंग क्लास् की फीस भरी थी  और आज ये हो गया उनके लड़के की हालत भी नाजुक है तो सब मोहल्ले वाले मिलकर उनकी मदद करने के लिए पैसे जमा कर रहे थे …और ये सब कहते हुए माँ पैसे निकाल कर आंसू बहा कर चली गयी जैसे उनका खुद का बेटा हो कितनी निश्वार्थ भावना होती है न माँ के अन्दर और विडम्बना ये थी की उनका खुद का लड़का कोमा में था और उन्हें कुछ खबर भी नहीं थी और उसके बदले मेरी सेवा हुई जा रही थी मैं इन सब बातों को अपने हिसाब से कर नहीं पा रहा था … ./

मतलब मैं सब समझते हुए भी कुछ ठीक नहीं कर पा रहा था और मैं थोडा माँ के प्यार में स्वार्थी भी हो गया था ../और कंही न कंही अब मैं सोच रहा था की जो हो रहा है हो मैं माँ को छोड़ के न जाऊं लेकिन मेरे हाथ में कुछ था नहीं ….और होनी को कुछ और मंजूर था …/

फिर तुम गिलहरी कैसे बन गये ….वो भावना में डूब रही थी …मेरे टोकने से चिढ गयी …/

तुम  इन्शानों ने अपने बच्चों को हद से ज्यादा ही छूट दे रखी है शर्मा जी अगर अपने बेटे को अपनी मोटर साइकिल चलाने की इजाज्ज्त नहीं देते थोडा दिल सख्त कर लेते थोडा रो लेता नाराज हो जाता मौत से तो नहीं लड़ रहा होता कम से कम 18 साल का हो जाता तो  हेलमेट की वैल्यू  तो समझता ..और उसके दोस्त के माता पिता पर जाने क्या बीत रही होगी …और फ़ोन की पूछो ही मत हर बच्चे को फ़ोन पकड़ा दिया है जैसे मिटटी का खिलौना हो मेरे गिलहरी दोस्त और चुनमुन चिड़िया सब रेडीशन के कारण मर गये …/ लेकिन तुम इन्शानो को क्या ही फर्क पड़ता है …/मैंने फ़िल्में भी देखी और पर्यावरण को बचाने के लिए कई लोग सामने आ रहे है और मैंने देखा कई लोग अकेला जाने क्या क्या कर रहे हैं …/पर सबको मिल कर सोचना होगा . . हम जीव जंतु  की लाइफ खराब हुई तुम लोग कौन से बचने वाले हो …. मूर्ति पूजा के बाद जो मूर्ति जल में विसर्जित कर देते हो ताकि मूर्ति में पैर न लगे उनका अपमान न हो …  उस मूर्ति में जो केमिकल मिला रहता है वो पानी में घुल जाता है और मछलियाँ और बाकी  जीव  जंतु खाकर या तो मर जाते हैं बीमार हो जाते है और अगर बच गये  तो तुम जैसे मछली के शौकीन लोग उसको खाकर उसकी बीमारी अपने सर पर ले लेते है  और समुंदरी मछुआरे जो  इतनी तादाद में मछली पकरते  हैं ये नहीं की जितनी जरुरत है उतनी पकडे बस अपने झोला भरना है …जिस दिन सब  मछली ख़तम उस दिन सारा ओक्सिज़न ख़त्म मैंने उससे पूछा वो कैसे तो उसने बताया की जब मछलियाँ चलती हैं यानी की पानी में तैरती हैं तो  इससे समन्दर हिलने लगता है और उसी से हवा चलती है और तुम मनुष्य सांस लेते हो …/जिस दिन मछली ख़त्म हो जाएगी उस दिन तुम मनुष्य ख़त्म हो जाओगे …/अब मैं आश्चर्य से उसको देखने लगा की उसको दूसरा प्राणी होकर कितनी चिंता है और एक मनुष्य जो की मैं खुद हूँ  कभी कुछ नहीं सोचा और कभी सोचा भी तो किया नहीं एक बार फेसबुक पर जमुना बचाओ अभियान चलाया भी तो कुछ ज्यादा हुआ नहीं जब तक जमीन पर जाकर काम नहीं करेंगे तब तक कुछ नहीं होगा मैं सोच सोच के ही दिमाग को चालती रही तब तक लॉक डाउन  लग गया खुद ही लोगों ने गाड़ियाँ चलानी बंद कर डी फक्ट्रियां बंद हो गयी जनुना जी से झाग गायब हो गया पानी नीला हो गया रंग बिरंगी चिड़िया आने लगी मेरे बालकनी में ही कितनी बार मोर आ गये थे जिसको देखने की तमन्ना बचपन से ही थी …/अब लग रह था की मनुष्य घर में रह कर सुधर जायेगा लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं फिर लोग जब बाहर निकलने लगे तब तक फिर वही धाक के तीन पात …/ फिर गिलहरी ने मेरा ध्यान तोरा और बताया की कैसे उस दिन जब उसकी माँ अस्पताल से आई तो एकदम से हतास थी उन्होंने बताया की अस्पताल में एक बिस्तर पर उनका बेटा था और वो  यकीन के साथ ये कह रही थी की क्यूंकि उसने जो स्वेटर पहना था वो माँ ने अपने हाथ से ही बुना था …./ अब बात ये थी की  जो घर में है वो कौन बहरूपिया था जो इतने दिनों से सबका प्यार और स्नेह ले रहा था …./अब जैसे ही मैं उनको कुछ समझाने की कोशिश करने लगा वैसे ही भगवन के कथनानुसार मैंने अपनी जुबान खोली वैसे ही मैं वापिस अपने गिलहरी योनी में वापिस आ  गया अपने छोटे शारीर और छोटी सी जान लेकर वापिश अपने दुनिया में आ गया मुझे देखकर सारे मेरे दोस्त खुश हो गये खुश तो मैं भी बहुत था लेकिन मेरे इन्शान्न रुपी शरीर  के साथ यादें भी चली जाती इतना प्यार और दुलार माँ का मुनहार  याद बस साथ रह गया  …मैंने पूछा की तुम उनसे मिलने क्यूँ नही जाते फिर गिलहरी ने बताया की कई बार गया लेकिन माँ मुझे पहचान ही नहीं पाती है बस उनको देख लेती हूँ और अब उनका बेटा भी वापिश आ गया है सो उन्हें मेरी  जरूरत ही नही है ….और मैंने उन्हें बताना जरुरी भी नहीं समझा ../अब बोलो लिखोगे मेरी आत्मकथा मैंने कहा हाँ क्यू नहीं लिखूंगी …./और इतना कह कर वो वापिस चली गयी मुझे मेरी कलम और सोच के साथ छोड़कर …/

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My name is Sadhana Bhushan. I love to write which I feel from my heart. Its journey has been started since my childhood. In My college day lots of articles and story has been published in local newspaper. I know Maithili, Hindi, Magahi and English. May be my English could be not strong because I have started English after my marriage while I had to do post-graduation in journalism. So, I have two degrees in post-graduation first in economics (Magadh university Patna) 2nd in journalism (Sikkim Manipal University). diploma in journalism from Magadh university Patna after film direction and production course from AAFFT. Then Join Sadhana News as an Intern coincidently. Where I have learned so many things. family and career were not going smoothly so I Have decided to write from home and my happiness not for earning It comes from writing. in lockdown period I have written 300 more than articles, story and so many things Whatever nobody was judging me because it was free, and I have learned so many things proper way to writing then journey has been started. Matram India where my First story has been published. and Pratilipi and more than two portals 9news but I was not satisfied then I have started my own website sadhana sources. Now a days three people are working with me. ( हालत कभी आसन नहीं थें . राह बहुत मुश्किल थी . अर्थशास्त्र में मास्टर हिंदी भाषा में करने के बाद इंग्लिश सीखी ताकि जर्नलिज्म की किताबें पढ़ सकूं . 2008 में डिप्लोमा किया था लेकिन घरवालों ने काम नहीं करने दिया की लड़कियों के लिए ये ठीक नहीं . मैंने बहुत से मेडल्स कॉलेज में जीता था पर सबको लगता था की अगर हाथ पैर टूट गया तो कौन शादी करेगा और मुझे बहार खेलने के लिए नहीं जाने देते थें . मैंने बात मान ली लेकिन सपने को छोड़ा नहीं . फिर उनकी बात मानकर शादी कर ली ताकि राजधानी में मेरा कुछ भला हो सके .फिर मैंने फिल्म प्रोडक्शन और जर्नलिज्म में मास्टर किया .कंप्यूटर में डिप्लोमा किया घर के साथ कुछ न कुछ करती रही . प्रोडक्शन के बाद मुझे बाहर जाने का अवसर मिला था लेकिन वही बात महिला को बाहर जाने का कोई प्रोयजन नहीं मैं चुप रही पर मेरे सपने मुझे सोने ही नहीं देते थे फिर मैंने जैसे तैसे साधना न्यूज़ में इंटर्नशिप किया लेकिन घर से 30 किलोमीटर जाना और 30 किलोमीटर आना आसान नहीं था क्यूंकि अब घर में मेरा बेटा भी था जिसको मेरी ज्यादा जरुरत थी . लेकिन सपने मेरी उम्र के साथ बढ़ रह थें . फिर मैंने ऑनलाइन लिखना शुरू किया और ये सफ़र अभी भी जारी है और उम्र के आखिरी पड़ाव तक चले इतनी सी तमन्ना है . मैं अक्सर ये सोचती थी की क्या करुँगी इतना सब सर्टिफिकेटस का सब बेकार हैं .लेकिन अब जब लिखना शुरू किया तो सब की जरुरत होती है तो अच्छा लगता है. बस मैं इतना कहना चाहती हूँ की अगर आपने सपने देखें हैं तो उसको पूरी करने की जिम्मेदारी भी आपकी ही है और जब आप सोने जाएँ तो सपना आपको सोने न दे . और उस सपने को पूरा करने के लिए अपने व्यस्त दिनचर्या से थोड़ा समय जरुर निकालें वरना आप जिन रिश्तों में उलझे हैं वही सबसे पहले ताने मारते है और वो ताना चुभता बहुत है ; क्यूंकि ये सब मेरे साथ हो चूका है . साधना भूषण

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