बचपन की यादें और कल्पना की शक्ति:

pic – AI
कल मैं जब वॉक पर जा रही थी, तब मैंने एक दुकानदार को अपना काम करते हुए देखा। उसकी दुकान में रेडियो की आवाज आ रही थी, जिसने मुझे अपने बचपन की यादों में ले जाया।
मैंने सोचा कि कितना अच्छा था जब हम रेडियो के जमाने में थे। हम सुनते थे और एक छाया प्रतिबिंब सी हमारे दिमाग में चलती रहती थी। हमारी कल्पना की शक्ति बहुत मजबूत थी, और हम अपने दिमाग में कहानियाँ और दृश्य बनाते थे।
लेकिन अब सोशल मीडिया के जमाने में, सब कुछ बदल गया है। जीवन बहुत तेज हो गया है, और हर चीज आसान हो गई है। लेकिन बच्चों की कल्पना करने की शक्ति कम हो रही है। वे अब अपने दिमाग में कहानियाँ और दृश्य बनाने के बजाय, स्क्रीन पर देखते हैं।
यह बदलाव हमें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम अपनी कल्पना की शक्ति को खो रहे हैं? क्या हम अपने बच्चों को enough समय दे रहे हैं कि वे अपनी कल्पना की शक्ति को विकसित कर सकें? ये सवाल हमें अपनी जीवनशैली और मूल्यों को फिर से विचार करने के लिए प्रेरित करते हैं।